मन तिरता आकाश
नैनों में सपने तिरते हैं,
मन तिरता आकाश
देखूं जब भी तेरा मुखड़ा,
लगता खिला पलाश
मधुरिम गीत लिख रही मेंहदी,
पायल गाती है
माथे पर कुमकुम की ज्वाला,
तन दहकाती है
मावस रात लगे पूनम सी,
ऐसा हुआ प्रकाश
तेरे कदमों की आहट जब,
द्वारे पर आई
मेरे मन के भीतर गूंजी,
मीठी शहनाई
तुझे अंक में भर लेने को,
हैं व्याकुल भुजपाश
बाकी सारी दुनियादारी,
लगती है फरजी
साथ तुम्हारा रहे हमेशा,
यही एक अरजी
प्रतिदिन हो बरसात प्रेम की,
हो न कभी अवकाश
"मौलिक एवं अप्रकाशित"
Comment
आदरणीय लक्ष्मण धामी मुसाफिर जी सादर नमस्कार, आपकी हौसलाअफजाई का दिल से शुक्रिया
आदरणीय समर कबीर जी सादर नमस्कार, आपकी हौसलाअफजाई को सादर नमन
जनाब बसंत कुमार शर्मा जी आदाब,अच्छा गीत लिखा आपने,बधाई स्वीकार करें ।
आ. भाई बसंत जी, सादर अभिवादन । सुंदर गीत हुआ है । हार्दिक बधाई ।
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