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अहसास होगा याद अगर करते हैं

2212-22-1122-22

अहसास होगा याद अगर करते हैं।।
आती है क्यूँ चाहत, के क्यूँ घर करते हैं।।

इस आस से की कल कुछ अच्छा होगा।
हम लोग इक दिन और सफर करते हैं।।

मैंने भी अक्सर नाम लिये बिन लिख्खा।
जज्बात ए दिल बेनाम सफर करते हैं।।

ये आपकी आहट ही कुरेदेगी घर को।
जो छोड़ जाना आप नज़र करतें हैं।।(पेश करना)

ये कह दिया किसने?? की यही सच है इक!
इंसान को भगवान असर करते हैं।

अल्लाह ये भगवान ईशा ड्रामा सब।
इंसानियत आला है अगर करतें हैं।।

मत मान कोई  भी बात मेरी अब सच तू।
है  झूठ, के चाहत कोई ,पर करतें हैं।।

.

आमोद बिंदौरी / मौलिक अप्रकाशित

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Comment by amod shrivastav (bindouri) on March 6, 2019 at 7:54pm

आ समर दादा नमन 

दादा ज्यादातर मैं अपने मन में गुनगुनाया मिसरा लेकर ही लिखता हूँ । तो तख्तिया करने जो बहर सामने आई उसे ही निभाता हूँ । इसी लिए काफिया चुनाव और शिल्प निभाना  पाना कठिन हो जाता है । फिर भी मैं कोशिस कर रहा हूँ । की आप को एक अच्छी रचना लिख कर दूँ । अभी तो मैं अपने भाव ही नहीं निभा पाता । रचना लड़ खड़ाती हुई लगती है । 

आप का मार्गदर्शन  के लिए नमन , मैं जल्द ही अंतिम मिसरा और त्रुटि सही कर के पोस्ट कर दूंगा ।

Comment by amod shrivastav (bindouri) on March 6, 2019 at 7:42pm

आ हरिओम भाई साहब आप का आभार 

Comment by Samar kabeer on March 5, 2019 at 4:38pm

जनाब आमोद बिंदौरी जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

मेरा मशविरा है कि आप आसान बहूर पर प्रयास करेंगे तो शिल्प की बारीकियां जल्द समझ सकेंगे,अन्यथा आप बह्र का वज़्न पूरा करने में ही उलझे रहेंगे ।

'इस आस से की कल कुछ अच्छा होगा'

इस मिसरे में ऐब-ए-तनाफ़ुर है 'से' की जगह "पर" कर लें,ऐब निकल जायेगा ।


'जो छोड़ जाना आप नज़र करतें हैं।'

इस मिसरे में 'नज़र' शब्द का अर्थ है "दृष्टि"और आप जो पेश करना के अर्थ में लेना चाहते हैं वो शब्द है "नज़्र"

'है  झूठ, के चाहत कोई ,पर करतें हैं'

ये मिसरा बेतुका है ।

Comment by Hariom Shrivastava on March 4, 2019 at 10:57pm

वाह,वाहह,बहुत सुंदर ग़ज़ल

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