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यूँ इश्क का इक सुकून हूँ मैं..

121-22-121-22

नये ज़माने का खून हूँ मैं।।

पुराने स्वेटर का ऊन हूँ मैं।।

मुझे न पढ़ना न पढ़ सकोगे।

मैं अहदे उल्फ़त* जुनून हूँ मैं। time of love

अजब! सिफारिश मेरी करोगे।

अभी भी शक है कि कौन हूं मैं।।

करोगे क्या मेरे ज़ख्म सी कर।

यूँ इश्क का इक सुकून हूँ मैं।।

मकान मेरा नहीं है गुम सा।

पुराने घर से दरून* हूँ मैं।। (दिल,मध्य कोर)

के हिज्र हो या विसाल तेरा।

हूँ दोनों शय में ,सुकून हूँ मैं।।

आमोद बिन्दौरी / मौलिक अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Samar kabeer on February 15, 2019 at 9:18pm

//कौन * जी ये काफ़िया गलत है । इसपर जानकारी चाहिए थी //

इस पर क्या जानकारी चाहिए?

//क्या किसी शब्द का एक मिसरे दो बार आना दोष पूर्ण होता है//

किसी शब्द का एक मिसरे में दो बार आना,दोष भी है,और हुनर भी है,आपके मिसरे में ये उचित नहीं है ।

'मैं अहदे उल्फ़त* जुनून हूँ मैं'

इस मिसरे में पहले 'मैं' की जगह "ऐ" कर सकते हैं ।

Comment by amod shrivastav (bindouri) on February 15, 2019 at 5:00pm
आ समर दादा नमन
दादा क्या किसी शब्द का एक मिसरे दो बार आना दोष पूर्ण होता है ।
वो मिसरा दो भाग में बट रहा था मुझे ठीक लगा इसलिए मैं से मैं में ख़त्म किया ।
कौन * जी ये काफ़िया गलत है । इसपर जानकारी चाहिए थी ।
Comment by Samar kabeer on February 15, 2019 at 4:17pm

जनाब आमोद बिंदौरी जी आदाब,ग़ज़ल अभी समय चाहती है,बहरहाल बधाई स्वीकार करें ।

दूसरे शैर के सानी में दो बार "मैं"?

'अभी भी शक है कि कौन हूं मैं'

इस मिसरे में क़ाफ़िया दोष है ।

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