उम्र संग ये बढती है
कर्म से अपने चलती है
परीक्षा धैर्य की लेकर
मार्ग प्रशस्त ये करती है||
कर्म के पथ पर चढ़कर
ये, अगले कदम को रखती है
हार-जीत के थपेड़े दे देकर
निखार हुनर में करती है||
त्रुटी को सुधार के तेरी
आत्मविश्वास से बढ़ती है
उतार चढ़ाव के मार्ग बना
हर परस्थितियो लड़ने को
तैयार हमें ये करती है||
तरक्की की सीढी चढ़े सदा
लक्ष्य निर्धारित करती है
उठा-गिरा गिरा-उठा कर
ज्ञान का महत्व कराती है ||
विजित कर हर
भय को मन के,
शौर्य गाथा गढ़ती है
आशा के संग जब
आगे बढती है||
सम्मान के जीने की चाबी
जीवन में भरती है
जब कर्म के संग ये जुडती है
नीव सुखद जीवन की रखती है ||
“फूल” कहे ये बात बड़ी
कर्म छोड़े किस्मत मिले
किस्मत छोड़े तो रंक
मेहनत भी तब काम ना आती
किस्मत ना हो जब संग ||
“मौलिक व् अप्रकाशित”
Comment
आपका बहुत बहुत धन्यवाद हौसलाअफजाई के लिए सुक्रिया कबीर जी|
जनाब फूल सिंह जी आदाब,अच्छी रचना हुई है,बधाई स्वीकार करें ।
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