For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

1~
भवन और सड़कें पुल-पुलियाँ,मजदूरों की माया।
ईंटे पत्थर ढोते-ढोते, सिकुड़ी इनकी काया।।
श्रम के कौशल से भारत में, ताजमहल बन पाया।
लेकिन मजदूरों के हिस्से, हाथ कटाना आया।।
2~
भूख मिटाने की खातिर ही, श्रम करतीं महिलाएँ।
यदाकदा मजदूरी करते, बाल श्रमिक भी पाएँ।।
शिक्षा से वंचित रह जातीं, इनकीं ही संतानें।
मगर नीति निर्धारक शिक्षा, सौ प्रतिशत ही मानें।।
3~
सबकी खातिर महल अटारीं, जो मजदूर बनाते।
भूमिहीन होकर बेचारे, बेघर ही रह जाते।।
नेता जब इनसे करते हैं, झूठे-झूठे वादे।
तब ये मन में सपने बुनते, निश्छल सीधे-सादे।।
4~
फटे पुराने वस्त्र पहनकर, जो रहता अधनंगा।
उसके ठेकेदारों के घर, बहती धन की गंगा।।
छत भी जिसे नसीब नहीं है, फुटपाथों पर सोता।
भूख गरीबी लाचारी सब, श्रमजीवी ही ढोता।।
5~
पेंतालीस पचास रहे या, ज़ीरो डिग्री पारा।
बोझा ढोते बीत रहा है, इनका जीवन सारा।।
मजदूरों के घर में अक्सर, होते रहते फाँके।
इनके श्रम की सच्ची कीमत,कभी न कोई आँके।।
6-
उत्पादन के तत्वों में है, श्रम अत्यंत जरूरी।
नियमित और न्यूनतम फिर भी, मिलती नहीं मजूरी।।
श्रमिकों के हित बना अधिनियम,जो भी लँगड़ा लूला।
शासन खुद कानून बनाकर, अमल कराना भूला।।
7~
जहाँ सदा होते ही रहते, नित नूतन घोटाले।
उसी देश में मजदूरों को, खाने के भी लाले।।
मजदूरों के हित में कोई, नयी योजना लाएँ।
इस दरिद्रता के जीवन से, उनको मुक्ति दिलाएँ।।
(मौलिक व अप्रकाशित)
**हरिओम श्रीवास्तव**

Views: 341

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Hariom Shrivastava on May 14, 2019 at 12:29am

उत्साहवर्धन हेतु हार्दिक आभार आदरणीय बासुदेव अग्रवाल जी।

Comment by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on May 10, 2019 at 6:19pm

आ0 हरिओम श्रीवास्तव जी सार छंद में आपने मज़दूरों की पीड़ा का बहुत सुंदर चित्रण किया है।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी रिश्तों पर आधारित आपकी दोहावली बहुत सुंदर और सार्थक बन पड़ी है ।हार्दिक बधाई…"
18 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"तू ही वो वज़ह है (लघुकथा): "हैलो, अस्सलामुअलैकुम। ई़द मुबारक़। कैसी रही ई़द?" बड़े ने…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"गोष्ठी का आग़ाज़ बेहतरीन मार्मिक लघुकथा से करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह…"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आपका हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"ध्वनि लोग उसे  पूजते।चढ़ावे लाते।वह बस आशीष देता।चढ़ावे स्पर्श कर  इशारे करता।जींस,असबाब…"
Sunday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"स्वागतम"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. रिचा जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमित जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service