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सार छंद - (मातृदिवस पर रचित)

1~
बचपन की यादों में जब मैं, मातृ दिवस पर लौटा।
पाया खुद के ही मुखड़े पर, नकली एक मुखौटा।।
लौट गया मैं गाँव अचानक, माँ से करने बातें।
माँ तो वहाँ न थी लेकिन थीं, यादों की बारातें।।
2~
माता माता मन्दिर जाती, रखे हाथ पर लोटा।
सीढ़ी चढ़ने में साड़ी का, लेती सदा कछोटा।।
माँ के पीछे-पीछे चलकर, हम बच्चे भी जाते।
माता को चुपचाप देखते, माता से बतियाते।।
3~
माँ ने अपनी खातिर माँ से, कभी नहीं कुछ माँगा।
उन मधुरिम यादों को हमने, क्योंकर खूँटी टाँगा।।
धूल झाड़कर मातृदिवस पर, पढ़ी पुरानी पोथी।
लगी अचानक माँ के सम्मुख, सारी दुनिया थोथी।।
4~
पनघट से माँ लेने जाती, सुबह शाम जब पानी।
उतने में हम सब मिल करते, भागदौड़ मनमानी।।
आकर माँ चूल्हा सुलगाकर, उसपर दाल चढ़ाती।
बीच-बीच में साथ-साथ ही, पुस्तक हमें पढ़ाती।।
5~
आ से आम ईख का ई है, पा से होता पानी।
कहकर माँ फिर दाल चलाती, हम करते शैतानी।।
हम सब माँ को घेरे रहते, जब तक जलता चूल्हा।
माँ कहती बाहर तो देखो, निकल रहा है दूल्हा।।
6~
कहती जाओ जल्दी से तुम, जाकर सभी नहा लो।
तब तक खाना बन जाएगा, एक साथ सब खालो।।
फिर हम सब लेकर आ जाते,अपनी-अपनी थाली।
किसको पहले रोटी मिलती,नजरें रहें सवाली।।
7~
माँ के आँचल के नीचे तब,थी कितनी खुशहाली।
लगती थी वह अनुपम सुंदर,माँ की हिलती बाली।।
सब्जी दाल न होती जिसदिन, माँ देती गुड़ रोटी।
लगती थी स्वादिष्ट बहुत वह, पतली हो या मोटी।।
8~
गुस्से में जब-जब भी माँ ने, कभी अगर जो मारा।
तो भी पिटते-पिटते ही तब, माँ का नाम पुकारा।।
घर में अगर न माँ जो दिखती, चैन नहीं तब आता।
छींक किसी को भी आ जाना, माँ का था जगराता।।
9~
माँ के पास यंत्र है कोई, सक्रिय वही हो जाता।
बच्चों की पीड़ा का माँ को,जो अहसास कराता।।
आधि-व्याधि जब-जब भी कोई,अगर कभी आ जाती।
मीलों दूर समझ लेती माँ,दौड़ी-दौड़ी आती।।
10~
माँ का अन्य विकल्प नहीं है, माँ मन्दिर माँ पूजा।
माता जैसा नाम नहीं है, जग में कोई दूजा।।
माँ ही धैर्य क्षमा सेवा है, माँ ही जननी जाया।
वही समय स्वर्णिम होता है,जब तक माँ की छाया।।
(मौलिक व अप्रकाशित)
**हरिओम श्रीवास्तव**

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Comment by Hariom Shrivastava on June 3, 2019 at 1:23pm

आदरणीय सौरभ शुक्ल जी,आपकी उपस्थिति व सुंदर समीक्षात्मक प्रतिक्रिया से अभिभूत हूँ। इस उत्साहवर्धन व आपकी उपस्थिति से सृजन सार्थक हुआ। आपसे प्राप्त मार्गदर्शन अमूल्य है,भविष्य में निश्चित ही लाभप्रद रहेगा। इस हेतु धन्यवाद। विलंबित आभार हेतु क्षमाप्रार्थी हूँ।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 17, 2019 at 11:34pm

हृदय की भावमय गहराइयों से संसृत हुई यह आत्मीय प्रस्तुति भावुक कर गयी, आदरणीय हरिओम जी। प्रत्येक बंद माँ की स्नेहमय स्मृतियों का पिटारा है जिसमें व्यतीत घटनाओं का ख़ज़ाना है। 

हार्दिक बधाइयाँ, आदरणीय। 

सार छंद भी मुक्तक श्रेणी का है। अतः किसी बंद की संज्ञा उसी तक सीमित रहेगी। अन्य या अगले बंद में उसका उद्धरण तदनुरूप सर्वनाम से करना शास्त्र और विधान की दृष्टि से उचित न होगा। 

शुभातिशुभ

सौरभ

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