दिल के बदले दिया सपना सलोना
नहीं खाली था शायद दिल में कोना
ये माना मैंने तुम सबसे हसीं हो
मगर सोना तो फ़िर भी होता सोना
ना वादा तुम करो मिलने का कोई
बड़ा मुश्किल है हमसे बाट जोहना
चलो तुम ही बता दो कैसे रक्खे
नहीं आता हमें है दिल संजोना
ये ऐसा रोग है जिसमें सभी को
कभी हंसना कभी पड्ता है रोना
हुआ माज़ी में जो तुम भूल जाओ
नही अच्छा है अब दामन भिगोना
अभी भी वक़्त है तुम मान जाओ
करूँ या फ़िर कोई मैं जादू टोना
गिला तुमसे नही है ‘दीप’ कोई
जो पाया है उसे तुम न खोना
-प्रदीप देवीशरण भट्ट-15.07.2019 मौलिक व अप्रकाशित
Comment
धन्य्वाद डंद्पाणी जी
जी अवश्य आप अपना आशिष यूं ही बनाएं रक्खे
जनाब प्रदीप जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।
'दिल के बदले दिया तुमने खिलौना'
ये मिसरा बह्र में नहीं है,देखियेगा ।
'ये माना हमने तुम सबसे हंसी हो'
इस मिसरे में 'हंसी' को "हसीं" कर लें ।
'ना तुम वादा करो मिलने का कोई'
इस मिसरे में 'ना' को "न" कर लें ।
'बड़ा मुश्किल है अब तो बाट जोहना'
ये मिजरा बह्र में नहीं है,देखियेगा ।
'गिला तुझसे नही है ‘दीप’ कोई
मिला है जो उसे अब तुम ना खोना'
मक़्ते में शुतरगुरबा दोष है,ऊला मिसरे में 'तुझसे' की जगह "तुमसे" कर लें,ऐब निकल जायेगा ।
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