For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बृज क्षेत्र का सावन और उसका सौंदर्य

मदमस्त चलती हवाएं और कार में एफएम पर मल्हार सुनकर, पास बैठी मेरी सखी साथ में गाना गाने लगती है "सावन के झूलों ने मुझको बुलाया, मैं परदेशी घर वापस आया" गाते गाते उसका स्वर धीमा होता गया और फिर अचानक वो खामोश हो गयी, उसको खामोश देखकर मुझसे पूंछे बिना नही रहा गया। फिर वो पुरानी यादों में खोई हुई सी मुझसे कहती है कि कहाँ गुम हो गए सावन में पड़ने वाले झूले, एक समय था जब सावन माह के आरम्भ होते ही घर के आंगन में लगे पेड़ पर झूले पड़ जाते थे और किशोरिया गाने लगती थी..
कच्ची नीम की निबौरी, सावन जल्दी आइयों रे।
अम्मा दूर मत दीजो रे, दादा नही बुलावेगे।
भाभी दूर मत दीजो रे, भइया नही बुलावेगे।

सावन के झूले की ये झोट बृजक्षेत्र के हर गांव, हर कस्बे में और हर नगर में जगह जगह नजर आती थी, पास पड़ौस की सभी महिलाएं अपनी अपनी सहेलियों के साथ झुंड बनाकर घरों में झूले डालती थी, रंग बिरंगी वेशभूषा में उसका दमकता सौंदर्य प्रकृति के उन्मुक्त वातावरण में और भी मनमोहक लगता था। किशोरियों और बालाओं में सावन के गीतों की प्रतिस्पर्धा सी होने लग जाती थी। झूलों के झोटों के साथ गीतों के आनन्द की पींगे बढ़ने लगती थी। हर विवाहिता के मन में पहले सावन की हुक उठने लगती थी वो अपने मायके में जाकर अपनी सखी सहेलियों से ठिठोली करने की सोचने लगती थी। अपने प्रियतम को सावन की पाती लिखने के लिए उसका दिल मचलने लगता था, साथ ही झूलों से आकाश चूमने की चाहत जवान होने लगती थी। बरखा बहार उसके तन मन को भिगोने लगती थी और उसका मन मयूर नृत्य करने लगता था। आखिर कुछ तो बात है इस महीने में जो सावन की इस आहट का पता अपने आप ही लगने लगता है और मन में कल्पनाएं आकार लेने लगती हैं।
फिजाओं में जब सौंधी खुशबू आने लगे, मदमस्त हवाएं बहने लगें, प्रकृति प्रेयसी के गीत गुनगुनाने लगे, भीगी भीगी ऋतु में हम तुम, तुम हम कहने लगे दिल की हर धड़कन, तो समझ लीजिए कि सावन का खुमार अपने पूरे यौवन पर है, जी हां सावन होता ही ऐसा है। क्या घर, क्या आंगन, क्या जंगल, क्या नदिया और क्या बादल सावन में तो ऐसा लगता है जैसे कि पूरी कायनात भीग रही है और जब रेशा रेशा, पत्ता पत्ता, बूटा बूटा, जर्रा जर्रा जिस वक्त भीगता है तब मिट्टी की सौंधी खुश्बू, हवाओं में घुल जाती है। अलबेली प्रकृति में नवयोवनायें झूम के गाने लगती है।
रिम झिम के गीत सावन गाये, हाय
भीगी भीगी रातों में।
होठो पे बात दिल की आय हाय
भीगी भीगी रातों

डॉ हृदेश चौधरी...
लेखिका

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 639

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Samar kabeer on July 25, 2019 at 2:27pm

मुहतरमा डॉ हृदेश चौधरी जी आदाब,अच्छी रचना हुई है,बधाई स्वीकार करें ।

कृपया रचना के साथ उसकी विधा भी लिख दिया करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service