दोहे
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वो तो बढ़चढ़ बाँटते, नफरत जिसका नाम
जन्नत में सद्भावना, शेष वतन का काम।१।
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वैसे तो हम सब रहे, विविध रंग के फूल
किन्तु सूख अब हो गये, जैसे तीखे शूल।२।
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पड़े जंग आतंक की, निसदिन जिन पर मार
उन्हें जिन्दगी फिर लगे, बोलो क्यों ना भार।३।
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तन से तो अब देश में, बिलय हुआ कश्मीर
मन से भी जब हो बिलय, बदलेगी तस्वीर।४।
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बिस्थापित थे जो हुये, समझो उनकी पीर
जा पायें निज ठाॅ॑व वो, कश्मीरी कश्मीर।५।
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यहाँ अमन के राह अब, बने न कोई शूल
नयी चली बयार से, हटे दिलों की धूल।६।
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वो करते कश्मीर की, आजादी की बात
नहीं चाहते जो मिटे, सघन तमस की रात।७।
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नारा बन कर ना रहे, सबका साथ विकास
जिसकी दसकों से करे, हर कश्मीरी आस।८।
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केवल कुर्सी के लिए, जो नित रहे अधीर
उन लोगों की चाह है, सुलगे फिर कश्मीर।९।
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शांति, चैन, सद्भावना, बढ़े देश से प्यार
कभी न झुलसे फिर यहाँ, केसर,सेब,चिनार।१०।
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मन्दिर की घन्टी कहे, बोले यही अजान
भला करे कश्मीर का, संशोधित सम्विधान।११।
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मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
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