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चलो भी जला के दिखा दें दिये
चले जा रहे वे अँधेरा किये।1
बहुत दिन गये चोट खाते हुए
रहेंगे कहाँ तक कहो मुँह सिये।2
किये जा रहे मौज मस्ती बड़ी
भुलाते हमें,जो हमारे हिये।3
चले पाँव नंगे, मिलीं कुर्सियाँ
लगा आजकल हैं नशा वे पिये।4
उड़ीं जो पतंगें, हुईं बेवफा
पिटे लोग लगता है' अपने किये।5
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
जनाब मनन कुमार सिंह जी आदाब,सुंदर प्रस्तुति हेतु बधाई ।
आपका आभार आदरणीय वर्मा जी,सादर।
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