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जैसी हो

अच्छी हो

ऐसी ही रहना तुम

कांटो की बगिया में

तितली सी उड़ जाना

रस्ते में पत्थर हो

नदिया सी मुड़ जाना

भँवरों की मनमानी

गुप-चुप मत सहना तुम

सांपों का डर हो तो

चिड़िया सी चिल्लाना

बाजों के पंजों में

मत आना, मत आना

जो दिल को भा जाए

उससे सब कहना तुम

सूरज की किरणों से

मत खुद को चमकाना

जुगनू ही रहना पर

अपनी किरणें पाना

बन कर मत रह जाना

सोने का गहना तुम

------------------------

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment

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Comment by vijay nikore on October 25, 2019 at 2:33pm

अति सुन्दर नवगीत के लिए हार्दिक बधाई, मित्र धर्मेन्द्र जी।

Comment by Samar kabeer on October 19, 2019 at 2:59pm

जनाब धर्मेन्द्र कुमार सिंह जी आदाब,अच्छा नवगीत लिखा आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

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