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ट्रेन समय की 

छुकछुक दौड़ी

मज़बूरी थी जाना

भूल गया सब

याद रहा बस 

तेरा हाथ हिलाना

तेरे हाथों की मेंहदी में

मेरा नाम नहीं था

केवल तन छूकर मिट जाना

मेरा काम नहीं था

याद रहेगा तुझको

दिल पर

मेरा नाम गुदाना

तेरा तन था भूलभुलैया

तेरी आँखें रहबर

तेरे दिल तक मैं पहुँचा 

पर तेरे पीछे चलकर

दिल का ताला 

दिल की चाबी

दिल से दिल खुल जाना

इक दूजे के सुख-दुख बाँटे

हमने साँझ-सबेरे

अब तेरे आँसू तेरे हैं

मेरे आँसू मेरे

अब मुश्किल है 

और किसी के

सुख-दुख को अपनाना

------------------

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment by Sheikh Shahzad Usmani on October 31, 2019 at 10:18pm

आदाब। वाह। दिलचस्प भी और भावपूर्ण भी।  हार्दिक बधाई आदरणीय धर्मेंद्र कुमार सिंह साहिब। बेहतरीन नवगीत।

कृपया ध्यान दे...

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