मेरा चेहरा मेरे जज़्बात का आईना है
दिल पे गुज़री हुई हर बात का आईना है।
देखते हो जो ये गुलनार तबस्सुम रुख़ पर
उनसे दो पल की मुलाकात का आईना है।
आड़ी तिरछी सी इबारत दिखे रुख़सारों पर
दिल मे लिक्खे ये सफ़ाहात का आईना है।
बाद मुद्दत के उन्हें देख के दिल भर आया
ये मुहब्बत के निशानात का आईना है।
अश्क् और आहें फ़ुगाँ और तराने ग़म के
आपके प्यार की सौगात का आईना है।
दामे दौलत के इशारात में फंस कर देखो
हर बशर अपनी ही औकात का आईना है।
दौर ए दुनिया जो बढ़ी हिद्दत ए नफ़रत दिल में
लबो लहजा भी मकाफ़ात का आईना है।
अनकहे कुछ हैं सवालात दबे सीने में
चश्म उन सबके जवाबात का आईना है।
आ गई गज़लों में मंजू के अजूबत थोड़ी
ये फक़त रब की इनायात का आईना है।
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
मुहतरमा मंजू सक्सेना जी आदाब,ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है,बधाई स्वीकार करें ।
'दिल मे लिक्खे ये सफ़ाहात का आईना है'
ये मिसरा बह्र में नहीं है,'सफ़ाहात' ग़लत शब्द है,सहीह शब्द है "सफ़हात"221 देखियेगा ।
'अश्क् और आहें फ़ुगाँ और तराने ग़म के
आपके प्यार की सौगात का आईना है'
इस शैर के ऊला में चूँकि बहुवचन के शब्द हैं,इसलिए रदीफ़ 'है' की बजाय "हैं" हो रही है ।
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