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गजब ये रंग देखा है जमाने का।
सहारा है सभी को इक बहाने का।
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नजर के तीर से कर चाक दिल मेरा,
कहेगें हाल तो कह दो निशाने का।
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रही आदत खिलौना प्यार को समझा,
किया है खेल रोने औ रुलाने का।
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हमारा दर्द ही हमको सिखाया है,
बुरे हालात में, हँसने हँसाने का।
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मरा है क्यों उसीपे ऐ दिवाना दिल,
हिदायत दे गया जो छोड़ जाने का।
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तड़पते देख हैं-हैरान उनको हम,
जिन्हें उस्ताद माना था सताने का।
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लिखा मैंने वही उल्फत जुड़ी तुमसे
बुरा ही हश्र हुआ मेरे फ़साने का।
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(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
आदरणीय सुनील जी बेहतरीन ग़ज़ल हुई है ... हार्दिक बधाई
इन तीन मिसरों पर पुनर्विचार अवश्य कीजियेगा-
\\हमारा दर्द ही हमको सिखाया है,\\--- हमारे दर्द ने हमको सिखाया है/हमारा दर्द ही हमको सिखाता है
\\मरा है क्यों उसीपे ऐ दिवाना दिल,\\
\\बुरा ही हश्र हुआ मेरे फ़साने का।\\
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