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सुनील प्रसाद(शाहाबादी)'s Blog (14)

ग़ज़ल- खता होते होते

शाब्दिक कलन -१२२ १२२ १२२ १२२

*******************

मुहब्बत हुई जो खता होते होते।

सरे-राह गुजरी खफा होते होते। १

------

हसूं या रोऊँ जिंदगी पर खुदाया,

जहर हो गई है दवा होते होते। २

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बची उम्र अब तो न जीने की कोई,

हँसी थी मुसीबत फना होते होते। ३

-------

शमां बुझ गई सो गई सारी महफ़िल,

विराना हुआ दिल वफ़ा होते होते। ४

--------

मिला तख़्त बैठें खजाना छुपाकर,

मुक़द्दस हुए अब सजा होते होते। ५

---------

रिवाजे बना… Continue

Added by सुनील प्रसाद(शाहाबादी) on May 25, 2017 at 3:24pm — 11 Comments

हकीकत हूँ परेशां हूँ (मुसल्सल ग़ज़ल)

हकीकत हूँ परेशां हूँ कभी हारा कहाँ हूँ मैं।

हवा हूँ तरबतर खुश्बू चमन तेरे रवाँ हूँ मैं। 1

--------

खिले जो भी गुले गुलजार हर इक ओर देखो तो,

हसीं मौसम चटकता रंग सब का बागवां हूँ मैं। 2

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अजानो में भजन में एक ही अक्स है मेरा,

दुआ हूँ मैं दया हूँ मैं सभी से आशना हूँ मैं। 3

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गमों की बात ही क्या हाथ जो दो हाथ में मेरे,

चले आओ सितारों में चमकता कहकशां हूँ मैं। 4

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अदालत से बचोगे तुम जहां भर के निगाहों से,

छुपाकर जो किये हो… Continue

Added by सुनील प्रसाद(शाहाबादी) on January 12, 2017 at 10:04pm — 9 Comments

चाँद बेनूर वफ़ा शर्म हया के हद में, (ग़ज़ल)

बहरे रमल मुसम्मन मखबून महजूफ,

2122 1122 1122 22,

इश्क तो पाक था बेदाद हुआ जाता है।

कातिले फ़ौज ही आजाद हुआ जाता है। 1

-------

चाँद बेनूर वफ़ा शर्म हया की हद में,

जुल्म कर अब्र ये आजाद हुआ जाता है। 2

------

लाख ही यत्न करो मर्ज बढ़ा ही जाए,

बात बेबात ही जेहाद हुआ जाता है। 3

------

हो रही खाक लगी आग बसारत देखो,

था बशर मोम का बर्बाद हुआ जाता है। 4

------

ऐ खुदा शाद अता रूह को फ़रमा देना,

अब जुदा जीभ से हर स्वाद हुआ जाता है।… Continue

Added by सुनील प्रसाद(शाहाबादी) on December 12, 2016 at 4:00pm — 18 Comments

हाल अपना भी (ग़ज़ल)

2122 2122 212,

आइए कुछ तो सुनाते जाइए।

हाल अपना भी बताते जाइए। 1

-----

लोग तो बातें बनायेगें बहुत,

झूठ पर भी मुस्कुराते जाइए। 2

-----

आप अपनी बात पर कायम रहें,

निर्धनो के घर बसाते जाइए। 3

-----

आप अनदेखा न यूँ हमको करें,

रूठ बैठा दिल मनाते जाइए। 4

-----

डालकर हम पर नजर बस इक जरा,

प्यार का अरमां सजाते जाइए। 5

-----

आपके सपने हमारे नींद में,

होश खोए है जगाते जाइए। 6

------

ये सँवरना आपके ही है… Continue

Added by सुनील प्रसाद(शाहाबादी) on December 4, 2016 at 1:30pm — 7 Comments

श्रधांजलि,(मुक्तक)

मापनी-2122 2122 212

एक दीपक उस जगह पर भी जले।

जिस जगह वे वीर सैनिक हैं पले।

शान से वो जो लड़े अंतिम साँस तक,

देश खातिर छोड़ दुनिया को चले।

--------

सर नवा कर के नमन कर जोड़ कर।

जो चलें रिश्ते सभी अब तोड़ कर।

याद थी तो देश की बस आन की,

मर मिटें दुश्मन की छाती फोड़कर।

---------

वीर थें जो धुन के पक्के बड़े।

आँधियों में भी अटल सीमा खड़े।

राह थी उनकी कठिन चलते रहें,

आज माटी के लिए माटी पड़े।

---------

प्राण त्यागे वे,… Continue

Added by सुनील प्रसाद(शाहाबादी) on October 31, 2016 at 8:22am — 8 Comments

समस्या बड़ी(गीतिका)हिंदी ग़ज़ल

मापनी-212 212 212 212

आधार छंद-(वाचिक स्त्रंगविणी)

_____________________________

धर्म का नाम ही क्यों समस्या बड़ी।

एक ही फूल से पंखुडी है झड़ी।1

-----

भेद भाषा निराशा बनी देश में,

अब कला बन बला युद्ध को है अड़ी। २

-----

शिष्य बिगड़े ग्रहण ज्ञान करते नही,

छीन गुरु हाथ की अब गई जब छड़ी। ३

-----

लाड़लों से जताते रहें प्यार फिर,

लाड़ली पाँव में बेड़िया क्यों पड़ी। ४

-----

चाँद छत पर नहीं आ रहा रूठकर,

रात गुजरी न आई मिलन… Continue

Added by सुनील प्रसाद(शाहाबादी) on October 24, 2016 at 9:30am — 6 Comments

अब नहीं मेरे गांव में(छंदमुक्त चतुष्पदी कविता)

वो बगिया पनघट शीतल-अब नहीं मेरे गाँव में।

बुढ़ा बरगद झूमता पीपल-अब नहीं मेरे गाँव में।

परोसा करते थें तृप्त भोजन पानी जो आतिथ्य में,

वो बर्तन कांसे और पीतल-अब नहीं मेरे गाँव में।

-----

भाभी पानी छिट जगाती-अब नहीं मेरे गाँव में

लचका लोरी सोहर गाती-अब नहीं मेरे गाँव में

चाची भाभी बहना को पिछड़ा ये सब लगता है

हँसुली विछुआ झांझ भाती-अब नहीं मेरे गाँव में

-------

फाग चैत की राग गूंजता-अब नहीं मेरे गाँव में

बैल अकड़ ट्रैक्टर से जूझता-अब नहीं मेरे… Continue

Added by सुनील प्रसाद(शाहाबादी) on September 26, 2016 at 9:21am — 18 Comments

एक हिंदी ग़ज़ल इस्लाह के लिए

बह्र-२१२२ २१२२ २१२२ २१२,

मुस्कुराती चांदनी है तो पिघलने दीजिये।

गेसुओं में चाँद तारे आज ढलने दीजिये।1

----

अश्क भर भर जाम पीता मै रहा हूँ दोस्तो,

डगमगाते इस कदम को भी सँभलने दीजिये। 2

----

जा रहेगें मंजिलों तक जख़्म वाले पांव भी,

यार बस अपने कदम को राह चलने दीजिये। 3

----

इस जहां को तो लुभाये चंद सिक्को की खनक,

बस हमारे ही हृदय में प्यार पलने दीजिये। 4

----

नफ़रतों की भीड़ में जो आग थे कल बाटते,

लुट गए वो लोग भी अब हाथ…

Continue

Added by सुनील प्रसाद(शाहाबादी) on September 13, 2016 at 1:00pm — 11 Comments

एक ग़ज़ल

२१२२ २२१२ २२,

जख्म जब दिल कोई छुपाता है।

दर्द होठों पर मुस्कुराता है।

******

मद भरी आँखे होठ के प्याले,

शाम ढलते ही याद आता है।

******

वो भला कैसे सँभलना जाने,

जो नही कोई चोट खाता है।

******

जाम पीकर भी प्यास कब बुझती,

बस कदम ही तो लड़-खड़ाता है।

******

लूट ले फिर इक बार आ करके,

आ तुझे दिल फिर बुलाता है।

*******

ख़ाक परवाने हो चलें देखो,

अब चिरागों को क्यों बुझाता है।

******

मौलिक अप्रकाशित…

Continue

Added by सुनील प्रसाद(शाहाबादी) on March 20, 2016 at 11:30am — No Comments

गीतिका- *रंग में जिंदगी को*

बहरे मुतदारिक मुसम्मन सालिम

मापनी-212__212__212__212,

समांत-(आते)___पदांत-(चलो)

पूर्णत: हिंदी व्याकरण पर आधारित रचना,

******************************

रंग में जिंदगी को डुबाते चलो।

शब्द मेरे लबों पर सजाते चलो।

------

जख्म रिसते रहें हो तुम्हारे अगर,

दर्द का गीत ही गुनगुनाते चलो।

-------

हो सरस फुल या कुम्हलाई कली,

जो मिले दिल उन्हीं से लगाते चलो।

-------

काँपते पैर हैं ढूँढते मंजिले,

राह में वो गिरें तो उठाते… Continue

Added by सुनील प्रसाद(शाहाबादी) on July 4, 2015 at 8:21pm — 9 Comments

कला गीतिका-दौर गम का ये पिघलने दो जरा

बहरे रमल मुसद्दस महजूफ

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन

2122 2122 212

--------------------------

हसरतें बेताब जलने दो ज़रा।

दौर गम का ये पिघलने दो जरा।

*****

मन जला है तन जला है इश्क में,

प्यार की अब साँझ ढलने दो ज़रा।

*****

प्यास होठों को सुखाये जा रहा,

भर नजर से जाम चलने दो ज़रा।

*****

होश में हम रोज रोते ही रहें,

अश्क पीकर आज हँसने दो ज़रा।

*****

आ उजाड़ो शौक से ऐ आँधियों,

बस्तियां दो चार बसने दो ज़रा।

******

आप… Continue

Added by सुनील प्रसाद(शाहाबादी) on June 11, 2015 at 9:04pm — 20 Comments

खुदाया करम हो

बहरे मुतकारिब मुसम्मन (8) सालिम

अरकान-122 122 122 122

फऊलुन फऊलुन फऊलुन फऊलुन

----------------------------

नजर में हया हो सभी रुख नरम हो।

खुदाया करम हो,करम हो करम हो।

******

मिले अक्ल सबको दिलों को मुहब्बत,

करें सब दुआ ये न कोई सितम हो।

******

लगे भी ठगी का हमें जो पता तो,

भूलें दुश्मनी सब सुहाना वहम हो।

******

जलें चाँद तारें मुड़े हर सहारे,

मेरे हाथ में हाथ तेरा सनम हो।

******

रवायत न रस्में न बंधन रहे… Continue

Added by सुनील प्रसाद(शाहाबादी) on June 1, 2015 at 6:51pm — 10 Comments

एक हिंदी ग़ज़ल/आ चली आ सितम

बह्र-212 212 212 212

बाअदब नजरे पेश

---------------------

चीज है क्या ज़रा देख लूँ बेरहम।

दर्द की है कसम आ चली आ सितम। (१)

****

नूर तो आँख का ले गये हो चुरा,

चाँदनी रात का दे रहे क्यों भरम। (२)

****

हो रही नग्न है नाचती ये ख़ुशी,

क्या नजर चाहती देखना ये हरम। (३)

****

देश को बेचतें आज भी लोग जो,

मोल दे दो उन्हें बेच देगें धरम। (४)

****

माँगते हम नहीं भीख तुमसे कभी,

राह चलते गिरें सम्हलें क्या शरम।… Continue

Added by सुनील प्रसाद(शाहाबादी) on April 7, 2015 at 1:30pm — 27 Comments

हिंदी गजल: बहरे हजज मुसद्दस (6) सालिम

1222 1222 1222

""""""""""""""""""""'"""""""'''"''''''

गजब ये रंग देखा है जमाने का।

सहारा है सभी को इक बहाने का।

*****

नजर के तीर से कर चाक दिल मेरा,

कहेगें हाल तो कह दो निशाने का।

*****

रही आदत खिलौना प्यार को समझा,

किया है खेल रोने औ रुलाने का।

*****

हमारा दर्द ही हमको सिखाया है,

बुरे हालात में, हँसने हँसाने का।

*****

मरा है क्यों उसीपे ऐ दिवाना दिल,

हिदायत दे गया जो छोड़ जाने का।

*****

तड़पते देख हैं-हैरान…

Continue

Added by सुनील प्रसाद(शाहाबादी) on April 2, 2015 at 12:00pm — 11 Comments

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