For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बहरे मुतकारिब मुसम्मन (8) सालिम
अरकान-122 122 122 122
फऊलुन फऊलुन फऊलुन फऊलुन
----------------------------
नजर में हया हो सभी रुख नरम हो।
खुदाया करम हो,करम हो करम हो।
******
मिले अक्ल सबको दिलों को मुहब्बत,
करें सब दुआ ये न कोई सितम हो।
******
लगे भी ठगी का हमें जो पता तो,
भूलें दुश्मनी सब सुहाना वहम हो।
******
जलें चाँद तारें मुड़े हर सहारे,
मेरे हाथ में हाथ तेरा सनम हो।
******
रवायत न रस्में न बंधन रहे अब,
फले प्यार यूँही न वादा कसम हो।
*******
न मंदिर न मस्जिद रहे तूं दिलों में,
वफ़ा की खुले राह पर हर कदम हो।
*******
सुनील शाहाबादी
मौलिक अप्रकाशित।

Views: 566

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by सुनील प्रसाद(शाहाबादी) on June 10, 2015 at 11:38am
आदरणीय सौरभ पांडे जी आपके पोस्ट पर आगमन से कृतार्थ हूँ ये रचना सचमुच राय शुमारी की विषय है नरम नर्म वहम बह्म आदि शब्द हिंदी शब्द कोष में मान्य है जैसे शह्र शहर और वज्न वजन की बात करें तो एक उर्दू से गल्त या गलत हो पर हिंदी व्याकरण की दृष्टि से सही है शब्द भी और वज्न-वजन भी आपकी राय का हमेशा स्वागत है और इस विषय में अपेक्षा रहेगी आदरणीय भ्राताश्री जी सस्नेह आशीष आकान्क्षि।
आदरणीय योगराज प्रभाकर जी से सूचना मिली की ये नर्म की जगह नरम नहीं चलेगा फिर मैंने उन्हें ऐसे कई शब्दों का हवाला दिया था जिस कारन ये रचना ओ बी ओ के पटल पर आई मगर मै नेटवर्क से दूर रहने के कारण जान नहीं पाया आपका अमोल राय का इन्तजार रहेगा नमन आपको।
Comment by सुनील प्रसाद(शाहाबादी) on June 10, 2015 at 11:14am
आदरणीय श्री सुनील जी आप सुनील का आभार स्वीकार करें आपका आशीर्वाद मिला हर्ष का विषय है नमन आपको।
Comment by सुनील प्रसाद(शाहाबादी) on June 10, 2015 at 11:12am
आदरणीय अनुज कृष्णा जानपुरी जी आपकी राय शुमारी के लिये हार्दिक आभार है भाई जब मै ये रचना कर रहा था तब मेरे जेहन में वो सारे सवालात थें जो आप सबको लग रहा है परन्तु मै गीतिका और ग़ज़ल के घाल मेल को समझना चाहता हूँ तभी ये रचना आप सबके सम्मुख रख दिया था परन्तु नरम-नर्म,वहम-बह्म,ये हवाला देकर मेरी रचना को प्रकाशित करने से रोका गया बाद में मैंने शहर-शह्र जैसे शब्दों का हवाला दे और गीतिका एवं हिंदी शब्दों के रूप का पक्ष रखा था तब कही ये रचना ओ बी ओ पर आई परन्तु नेट्वर्किंग से दूर होने के कारण पता ही नहीं चला की ये रचना प्रकाशित हो चुकी है जिसके लिये मै निर्णायक मंडल का बेहद शुक्रगुजार हूँ।
Comment by सुनील प्रसाद(शाहाबादी) on June 10, 2015 at 10:59am
आदरणीय भ्राता निलेश जी,आदरणीय समर कबीर जी,आदरणीय महर्षि त्रिपाठी जी आप सभी को हार्दिक आभार है बिलम्ब से पोस्ट पर आने के लिये खेद है।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 9, 2015 at 7:21pm

आपकी ग़ज़ल के कई मिसरों को फिर से देखना उचित होगा, आदरणीय. किन्तु आप कितना तैयार होंगे, यह जानने की बात भी है. आपका अभी तक इस रचना पर आना नहीं हुआ है. प्रतीक्षा रहेगी.
शुभेच्छाएँ

Comment by shree suneel on June 4, 2015 at 8:14am
रवायत न रस्में न बंधन रहे अब,
फले प्यार यूँही न वादा कसम हो।. .ख़ूब कहा
अच्छी प्रस्तुति आदरणीय. बधाई
Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on June 3, 2015 at 10:24pm

सुन्दर गज़ल हुयी है आ० सुनील शाहाबादी जी!हार्दिक बधाई!

कई मिसरो में बात खुल कर नही आ पा रही है!या शायद मै नही पकड़ पा रहा हूँ!

Comment by maharshi tripathi on June 3, 2015 at 10:10pm

न मंदिर न मस्जिद रहे तूं दिलों में,
वफ़ा की खुले राह पर हर कदम हो।,,,,,,,,,,सुन्दर आ. सुनील प्रसाद(शाहाबादी जी ,,आपकी इस सोच को आपके अनुज का सलाम |

Comment by Samar kabeer on June 3, 2015 at 3:31pm
जनाब सुनील प्रसाद जी,आदाब,सुन्दर प्रस्तुति हेतु बधाई स्वीकार करें,मतले के ऊला मिसरे में आपने "नरम" का क़ाफ़िया लिया है,सही शब्द है "नर्म",


"भूलें दुश्मनी सब सुहाना वहम हो"

यह मिसरा बह्र से ख़ारिज हो रहा है,देख लीजियेगा ,सही शब्द है "वह्म" ।
Comment by Nilesh Shevgaonkar on June 3, 2015 at 2:36pm

बहुत ख़ूब आदरणीय..
वहम के wazn को लेकर संशय है..
ग़ज़ल के लिए बधाई 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

अजय गुप्ता 'अजेय commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा
"बहुत बेहतरीन ग़ज़ल। एक के बाद एक कामयाब शेर। बहुत आनंद आया पढ़कर। मतले ने समां बांध दिया जिसे आपके हर…"
43 minutes ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा
"आ. अमीरुद्दीन अमीर साहब जब मलाई लिख दिया गया है यानी किसी प्रोसेस से अलगाव तो हुआ ही है न..दूध…"
23 hours ago
Ashok Kumar Raktale commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post पहलगाम ही क्यों कहें - दोहे
"आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी सादर, पहलगाम की जघन्य आतंकी घटना पर आपने अच्छे दोहे रचे हैं. उस पर बहुत…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post दोहा चतुर्दशी (महाकुंभ)
"आदरणीय सुरेश कल्याण जी, महाकुंभ विषयक दोहों की सार्थक प्रस्तुति के लिए हार्दिक धन्यवाद. एक बात…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post दोहा सप्तक
"वाह वाह वाह !  आदरणीय सुरेश कल्याण जी,  स्वामी दयानंद सरस्वती जैसे महान व्यक्तित्व को…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post मौत खुशियों की कहाँ पर टल रही है-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"जय हो..  हार्दिक धन्यवाद आदरणीय "
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post पहलगाम ही क्यों कहें - दोहे
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी,  जिन परिस्थितियों में पहलगाम में आतंकी घटनाओं को अंजाम दिया गया, वह…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी left a comment for Shabla Arora
"आपका स्वागत है , आदरणीया Shabla jee"
Monday
Shabla Arora updated their profile
Monday
Shabla Arora is now a member of Open Books Online
Monday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . अपनत्व
"आदरणीय सौरभ जी  आपकी नेक सलाह का शुक्रिया । आपके वक्तव्य से फिर यही निचोड़ निकला कि सरना दोषी ।…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-174
"शुभातिशुभ..  अगले आयोजन की प्रतीक्षा में.. "
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service