बह्र-२१२२ २१२२ २१२२ २१२,
मुस्कुराती चांदनी है तो पिघलने दीजिये।
गेसुओं में चाँद तारे आज ढलने दीजिये।1
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अश्क भर भर जाम पीता मै रहा हूँ दोस्तो,
डगमगाते इस कदम को भी सँभलने दीजिये। 2
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जा रहेगें मंजिलों तक जख़्म वाले पांव भी,
यार बस अपने कदम को राह चलने दीजिये। 3
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इस जहां को तो लुभाये चंद सिक्को की खनक,
बस हमारे ही हृदय में प्यार पलने दीजिये। 4
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नफ़रतों की भीड़ में जो आग थे कल बाटते,
लुट गए वो लोग भी अब हाथ मलने दीजिये। 5
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भूख जिनकी बंद रखती है तिजोरी आपकी
उन गरीबो के बुझे चूल्हे तो जलने दीजिये। 6
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सुनील प्रसाद शाहाबादी
मौलिक एवम् अप्रकाशित रचना।
Comment
अश्क भर भर जाम पीता मै रहा हूँ दोस्तो,
डगमगाते इस कदम को भी सँभलने दीजिये। 2
अश्क भर भर जाम पीता ही रहा हूँ दोस्तो,
डगमगाता हैं कदम लेकिन सँभलने दीजिये। 2
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मंजिलों तक जा रहेंगे घाव से ये पग भरा,
हो बिछे जो राह भर भी खार चलने दीजिये। 3
जख़्म वाले पांव का भी तो सफ़र रुकता नहीं
सोच कर अपने कदम को राह चलने दीजिये। 3
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इस जहां को तो लुभाये चंद सिक्को की खनक,
बस हमारे ही हृदय में प्यार पलने दीजिये। 4
इस जहां को मोहती है चंद सिक्को की खनक,
छोड़िये अपने हृदय में प्यार पलने दीजिये। 4
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नफ़रतों की भीड़ में जो आग थे कल बाटते,
लुट गए वो लोग भी अब हाथ मलने दीजिये। 5
आग ही बाँटा किये जो नफ़रतों की भीड़ में
लुट गए वो लोग भी अब हाथ मलने दीजिये। 5
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आप इसके आगे और भी बेहतर कर सकते हैं
शुभ-शुभ
मुस्कुराती चांदनी है तो पिघलने दीजिये।
गेसुओं में चाँद तारे आज ढलने दीजिये।1
एक रूमानी सोच मतला बन कर साझा हुआ है. बढ़िया !
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अश्क भर भर जाम मै पीता रहा हूँ दोस्तों,
डगमगाते इस कदम को भी सँभलने दीजिये। 2
’जाम मैं’ के कारण तनाफ़ुर का दोष बन रहा है, आदरणीय. इससे निजात पाना अभी अर्थात सीखने के इस दौर में उचित होगा. ’जाम मैं’ का उच्चारण वस्तुतः ’जाम्मैं’ हो रहा है. ’दोस्तों’ का प्रयोग सम्बोधन की तरह हुआ है, अतः इसे ’दोस्तो’ किया जाना सही होगा.
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मंजिलों तक जा रहेंगे घाव से ये पग भरा,
हो बिछे जो राह भर भी खार चलने दीजिये। 3
शेर के मिसरों में कविताई जैसा का विन्यास कई बार उलझन का कारण बन जाता है. आपका यह शेर आदरणीय इसका उदाहरण बन रहा है. मिसरों को एक सीधे-सादे वाक्य की तरह रखने का प्रयास कीजिये.
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इस जहां को तो लुभाये चंद सिक्को की खनक,
बस हमारे ही हृदय में प्यार पलने दीजिये। 4
बस हमारे ही हृदय में प्यार पलने दीजिये.... क्यों साहब, मेरे हृदय में क्यों नहीं प्यार और स्नेह पलना चाहिए ? है न ? ’हमारे ही’ का प्रयोग इस शेर को इन अर्थों में नाहक व्यक्तिवाची बना रहा है.
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नफ़रतों की भीड़ में जो आग थे कल बाटते,
लुट गए वो लोग भी अब हाथ मलने दीजिये। 5
बाटते या बाँटते ? बाटना का प्रयोग कुछ शायरों ने किया और यह प्रयोग में चल पड़ा है, वर्ना सही शब्द बाँटना ही है.
शेर के इशारे बेहतर हैं .. बधाई ..
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बंद रखती भूख जिनकी है तिजोरी आपकी
उन गरीबो के बुझे चूल्हे तो जलने दीजिये। 6
बहुत खूब ! भाव पक्ष के हिसाब से यह शेर बहुत अच्छा बन पड़ा है. शब्दों के विन्यास को तार्किक किया जाय तो यह शेर और बोलता हुआ हो उठेगा.
आपकी ग़ज़ल से यह मंच समृद्ध हुआ है, आदरणीय सुनील शाहाबादी जी. आपका यह अभ्यासकर्म सतत बना रहे
हार्दिक शुभकामनाएँ
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