For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अब नहीं मेरे गांव में(छंदमुक्त चतुष्पदी कविता)

वो बगिया पनघट शीतल-अब नहीं मेरे गाँव में।
बुढ़ा बरगद झूमता पीपल-अब नहीं मेरे गाँव में।
परोसा करते थें तृप्त भोजन पानी जो आतिथ्य में,
वो बर्तन कांसे और पीतल-अब नहीं मेरे गाँव में।
-----
भाभी पानी छिट जगाती-अब नहीं मेरे गाँव में
लचका लोरी सोहर गाती-अब नहीं मेरे गाँव में
चाची भाभी बहना को पिछड़ा ये सब लगता है
हँसुली विछुआ झांझ भाती-अब नहीं मेरे गाँव में
-------
फाग चैत की राग गूंजता-अब नहीं मेरे गाँव में
बैल अकड़ ट्रैक्टर से जूझता-अब नहीं मेरे गाँव में
क्या चाचा किसानी करतें बिज खाद महंगा बहुत
कृषि में कुछ अक्ल सुझता-अब नहीं मेरे गाँव में
-------
मीठे गुड़ की लकठो जलेबी-अब नहीं मेरे गाँव में
दादी के कुर्ते की जेबी-अब नहीं मेरे गाँव में।
चलती दबंगों की दबंगई सहमी है इंसानियत
दंडित होता रहता फरेबी-अब नहीं मेरे गाँव में
-------
खेले बहना चिक्का गोटी-अब नहीं मेरे गाँव में
बांधती एक दूजे की चोटी-अब नहीं मेरे गाँव में
भाई बापू शहर कमायें सकल जवानी गुजर गई
आँख अम्मा की चुपके रोती-अब नहीं मेरे गाँव में
--------
धोती कुर्ता कांध पर लाठी-अब नहीं मेरे गाँव में
बाँस पटुआ की बुनी खाटी-अब नहीं मेरे गाँव में
नशा जुआ कुंठा ग्रसित थम गई अब युवा जवानी
पहलवानी जांघ की चाटी-अब नहीं मेरे गाँव में।
--------
मोर पपीहा कोयल की ठौर-अब नहीं मेरे गाँव में
भूख तड़फे,मुख को कौर-अब नहीं मेरे गाँव में
कविता गहि गहि खूब सुनाये ले सबका आशीष
बना सुनील कवि सिरमौर-अब नहीं मेरे गाँव में।
अब नहीं मेरे गाँव में-अब नहीं मेरे गाँव में....
________________________________________
मौलिक एवं अप्रकाशित रचना
सुनील प्रसाद शाहाबादी।

Views: 1230

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr Ashutosh Mishra on November 19, 2016 at 4:34pm

आदरणीय सुनील जी . गाँव का चित्रण ..हमारे शानदार अतीत का चित्रण ..आज जिसे हम तरक्की कहते हैं उसमे हमने बहुत कुछ खो दिया है ..इस बखूबी से किये गए अतीत के चित्रण के लिए ढेर सारी शुभकामनायें सादर 

Comment by Er Kumar Nusrat on November 2, 2016 at 11:25am
आदरणीय बहुत सुंदर सार्थक रचना बहुत बहुत बधाई
Comment by सुनील प्रसाद(शाहाबादी) on October 24, 2016 at 10:04am
आदरेया अल्पना शर्मा जी,आदरणीय श्रद्धेन्दु मुखर्जी साहब,आदरणीय प्रमोद श्रीवास्तव जी,आदरणीय अशोक कुमार रक्ताले साहबसाहब,सत्यनारायण सिंह जी आप सबका आत्मीय प्रोत्साहन पाकर कृतज्ञ हूँ और हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ।
Comment by सुनील प्रसाद(शाहाबादी) on October 24, 2016 at 9:58am
आदरेया राजेश कुमारी जी, आदरणीय ब्रजेश कुमार ब्रज जी,श्रद्धेय सौरभ पांडे जी,आप सबका हृदय से आभारी हूँ।
देर से आने का कारण था की आरा में प्रशासनिक आदेश के तहत अंतरजाल पर रोक लगा दी गई थी।
Comment by Satyanarayan Singh on October 23, 2016 at 2:20pm

आदरणीय सुनील प्रसाद जी सादर, यह निर्विवाद सत्य है कि हमारी संस्कृति और सभ्यता की झलक हमें गाँव में ही देखने को मिलती है भले ही आज के शहरी जीवन के तुलना में ग्रामीण जीवन की रफ्तार कम हो किन्तु आज के समाज की मानसिकता के कारण हमारी संस्कृति और सभ्यता गाँव से धीरे धीरे ओझल हो रही है जिसकी टीस आपकी इस सुन्दर कविता के माध्यम से ध्वनित होती है. इस सुन्दर रचना हेतु तथा महीने के सर्वश्रेष्ठ रचनाकार चुने जाने के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय

Comment by Ashok Kumar Raktale on October 22, 2016 at 7:52am

आदरणीय सुनील प्रसाद शाहाबादी जी सादर, बहुत सुंदर कथ्य लिया है आपने. कुछ त्रुटियों के बावजूद रचना में सम्मोहन बना हुआ है.बहुत सुंदर प्रस्तुति. बहुत-बहुत बधाई. सादर.

Comment by PRAMOD SRIVASTAVA on October 21, 2016 at 11:54pm

गँउवे क दशा बखानत राउर रचना अउर महीना क सर्वश्रेष्ठ रचना के खातिर  बधाई ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by sharadindu mukerji on October 19, 2016 at 1:31am
"भाव पक्ष का आत्मीय विस्फोट" कह कर आदरणीय सौरभ जी ने इस रचना की आत्मा को सुबह की सुनहरी धूप की तरह सबके सामने बिखेर दिया है. आदरणीय सुनील जी इस मंतव्य के कारक हैं इसलिए वे अपनी प्रस्तुति के लिए बधाई के पात्र हैं. महीने के सर्वश्रेष्ठ रचनाकार चुने जाने के लिए हार्दिक अभिनंदन आ. सुनील जी. सादर.
Comment by Arpana Sharma on October 17, 2016 at 7:42pm
बहुत सुंदर कविता और महिने की सर्वश्रेष्ठ रचना चयनित होने की बहुत बधाई आ.सुनील प्रसाद जी

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 17, 2016 at 6:35am

एक अच्छी कविता के लिए हार्दिक बधाई, आदरणीय सुनील जी.. भाव पक्ष का आत्मीय विस्फोट इस प्रस्तुति को अद्वितीय बना रहा है. किन्तु, इसीके साथ वर्तनी अशुद्धियाँ भी हैं जो खटकती हैं. अवश्य ये टंकण त्रुटियाँ हैं. सुधार कर लें. 

हार्दिक शुभकामनाएँ 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
"आदरणीय सुशील सरना जी, आपने क्या ही खूब दोहे लिखे हैं। आपने दोहों में प्रेम, भावनाओं और मानवीय…"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए शेर-दर-शेर दाद ओ मुबारकबाद क़ुबूल करें ..... पसरने न दो…"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आदरणीय धर्मेन्द्र जी समाज की वर्तमान स्थिति पर गहरा कटाक्ष करती बेहतरीन ग़ज़ल कही है आपने है, आज समाज…"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
9 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। आपने सही कहा…"
Wednesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"जी, शुक्रिया। यह तो स्पष्ट है ही। "
Tuesday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"सराहना और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी"
Tuesday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लघुकथा पर आपकी उपस्थित और गहराई से  समीक्षा के लिए हार्दिक आभार आदरणीय मिथिलेश जी"
Sep 30
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आपका हार्दिक आभार आदरणीया प्रतिभा जी। "
Sep 30
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लेकिन उस खामोशी से उसकी पुरानी पहचान थी। एक व्याकुल ख़ामोशी सीढ़ियों से उतर गई।// आहत होने के आदी…"
Sep 30
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"प्रदत्त विषय को सार्थक और सटीक ढंग से शाब्दिक करती लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय…"
Sep 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदाब। प्रदत्त विषय पर सटीक, गागर में सागर और एक लम्बे कालखंड को बख़ूबी समेटती…"
Sep 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service