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शाब्दिक कलन -१२२ १२२ १२२ १२२
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मुहब्बत हुई जो खता होते होते।
सरे-राह गुजरी खफा होते होते। १
------
हसूं या रोऊँ जिंदगी पर खुदाया,
जहर हो गई है दवा होते होते। २
------
बची उम्र अब तो न जीने की कोई,
हँसी थी मुसीबत फना होते होते। ३
-------
शमां बुझ गई सो गई सारी महफ़िल,
विराना हुआ दिल वफ़ा होते होते। ४
--------
मिला तख़्त बैठें खजाना छुपाकर,
मुक़द्दस हुए अब सजा होते होते। ५
---------
रिवाजे बना क़त्ल भी वो कराएं,
चलो रह गयें वो खुदा होते होते। ६
----------
खनक जाम की बोतलों का लुढ़कना,
हमें नींद आई नशा होते होते। ७
------------------
मौलिक एवं अप्रकाशित रचना,
सुनील प्रसाद शाहाबादी।

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Comment by सुनील प्रसाद(शाहाबादी) on June 1, 2017 at 3:52pm
आदाब श्याम नारायण वर्मा जी हौसला अफजाई के लिए।
Comment by सुनील प्रसाद(शाहाबादी) on June 1, 2017 at 3:51pm
शुक्रिया मोहतरम बृजेश कुमार जी।
Comment by Shyam Narain Verma on May 30, 2017 at 4:29pm
बहुत बढ़िया गजल बधाई आपको । 
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on May 28, 2017 at 5:57pm
खूबसूरत ग़ज़ल आदरणीय..आदरणीय राम अवध जी ने खूबसूरत सुझाव दिया है..
Comment by सुनील प्रसाद(शाहाबादी) on May 26, 2017 at 8:48pm
आदरणीय गुरप्रीत जी आपके स्नेह को हृदय से नमन।
Comment by Gurpreet Singh jammu on May 26, 2017 at 4:42pm

आदरणीय सुनील प्रसाद जी,, इस खूबसूरत ग़ज़ल के लिए आपको बहुत बधाई 

Comment by narendrasinh chauhan on May 26, 2017 at 10:14am

खूब सुन्दर रचना 

Comment by सुनील प्रसाद(शाहाबादी) on May 25, 2017 at 8:49pm
बहुत नेक इस्लाह आदरणीय राम अवध विश्वकर्मा जी आपका बेहद शुक्रिया ।
Comment by Ram Awadh VIshwakarma on May 25, 2017 at 6:26pm
बेहतरीन गज़ल के लिये बधाई
मेरे हिसाब से अगर दूसरे शेर का पहला मिसरा यूँ कर लें तो शेर दुरूस्त हो जायेगा।
हँसूँ जिन्दगी पर या रोऊँ खुदाया। ऐसा करने से शेर बह्र में आआ जायेगा।
Comment by सुनील प्रसाद(शाहाबादी) on May 25, 2017 at 6:24pm
हौसला अफजाई के लिए बेहद शुक्रिया मोहतरम आरिफ साहिब

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