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"जो साथ खड़े हो तुम मेरे,
तो इनती बात तो सच होगी,
जिस राह से तुम चल कर आये,
हमने भी वही तो चुनी होगी,"
वाह ..बहुत खूब ..एक अच्छी कविता के लिए बधाई . :)
आदरणीय अंबरीश जी, एक एक कविता जब अपने से अलग करते हैं लगता है एक और भाव से अपने को एक साथ जोड़ लिया और दूर भी कर लिया. और उस पर आपलोगों का उसे पसंद करना अपने पर विश्वास बढ़ा देता है..एक बार फिर शब्द ढूँढने निकल पड़ते हैं...बहुत शुक्रिया,सादर,आराधना
//अक्सर यूँ होता है जब भी,
बात से बात उलझती है,
सोची हुई कहते हैं कुछ,
और कुछ तो यूँ ही फिसलती है
वो अन-सोची बातें ही दिल में,
रह जाती हैं क्या कहिये,
सोच-सोच कर जो भी कहा था
नापा-तौला याद नहीं,//
आदरणीया आराधना जी ! काफी देर तक इसे को गुनगुनाते रहे हम .........इस सशक्त व प्रवाहयुक्त गीत के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें .........:-)
एक बात कही थी याद है अब तक
लहज़े-वह्ज़े याद नहीं
एक दर्द हुआ, एहसास है अब तक
दिल या ज़हन में याद नहीं .........waaaaaaaaaaaaaaaaaah.........bahut khoob....
very nice
aapka hardik dhanyavad, aapki sarahna humein protsahit karti hai ke hum prayatnsheel rahein.
प्रस्तुत कविता अपनी ही रौ में बहे जाती है. मानों एक अनमनायी-सी धारा अपनी राह ढूँढती, बनाती धीरे-धीरे सरसती जा रही हो..अलसायी-सी. ’कुछ वही-वही, कुछ नया अभी’ के भावों में स्वयं चकित होती हुई-सी. या, ’जो बीत गया, क्यों बीत गया’ के अनुत्तरित सवालों की गहन लोच में उजबुजायी हुई-सी. और, पढ़नेवाला इसकी बेलौस रवानी में संग-संग अनायास बहता जाता है.
इसकी दुर्निवारता का अनुगामी स्वर अप्रस्फुटित कैसे रहे -
कुछ सिले .. कई बार मिले
क्यों फिसल गये.. कुछ याद नहीं...
संवेदना और संभावनाओं के प्रति हार्दिक शुभकामनाएँ. .
Ved Ji and Ganesh jee, thanks for your words of appreciation.
जो साथ खड़े हो तुम मेरे,
तो इतनी बात तो सच होगी,
जिस राह से तुम चल कर आये,
हमने भी वही तो चुनी होगी,
राहें वापस जाने की कभी,
हमने ढूंढी बोलो तो ?
मंजिल की धुन में तुम जैसे ही,
कोई मोड़-दोराहा याद नहीं,
बहुत ही खुबसूरत कविता, लेखिका ने भावनाओं को बहुत ही सलीके से प्रेषित किया है | बधाई स्वीकार करें इस शानदार अभिव्यक्ति पर |
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