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मृग-बादल (तोटक छंद)

छंद - तोटक
(सलगा सलगा सलगा सलगा = 12 वर्ण)

नभ बादल बादल आज यहाँ,
चमकार करे सुन वीज यहाँ,
नभ काजल काजल मेश हुआ,
दिलका दव ठार तु यही दुआ|

मृग-बादल आज महेर दया,
दिलसे बरसो अब छोड़ हया,
गजराज जरा गरजे नभमें,
वनराज फिरे फिरसे वनमें|

टपके जलबुंद हजार कहीं,
झमकार सुनो जलधार यही,
जल-चुंबन अंबर से बरसे,
पल ये पल को धरती तरसे|

मधु सोडम जो प्रसरी भुवने,
तन वो मन हाश भरे सुखमें,
सुन पायल की झमकार जरा,
वन मोहक शीतल घोर हरा|

झरना बहता नग से झरता,
किलशोर युही मृग जो सुनता,
मृग-बादल आज महेर दया,
दिल से बरसो अब छोड़ हया|

**********
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Dimple Sharma on September 2, 2020 at 4:09pm

आदरणीय मुकुल कुमार जी नमस्ते, खुबसूरत रचना पर बधाई स्वीकार करें आदरणीय।

Comment by Mukulkumar Limbad on August 25, 2020 at 11:51pm

आदरणीय आशीष यादवजी, सादर प्रणाम आपकी बात सही है| चोथी पंक्ति में कमी है| जिसमे मैं सुधार करना चाहुँगा| घन्यवाद

"दिलका दव ठार तु यही दुआ"

Comment by आशीष यादव on August 25, 2020 at 11:25pm

बहुत बढ़िया छंद की रचना हुई है। बधाई स्वीकार कीजिए। शायद चौथी पंक्ति में कुछ कमी है।

Comment by Mukulkumar Limbad on August 25, 2020 at 8:18pm

आदरणीय समर कबीरजी सादर प्रणाम, प्रस्तुत छंद रचना प्रयास को सराहने के लिए आपका हृदय से आभार.सादर 

Comment by Samar kabeer on August 25, 2020 at 3:46pm

जनाब मुकुल कुमार जी आदाब, अच्छी छंद रचना हुई है, बधाई स्वीकार करें ।

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