चाहे करता भाग्य ही, जीवन भर संयोग
उच्च कर्म से भाग्य भी, बदला करते लोग।१।
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सद्कर्मों की चाल से, माता देकर त्राण
गर्भकाल में जीव का, करे भाग्य निर्माण।२।
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कर्म भाग्य दोनों रहें, जब बन पूरक रोज
पाते दुख के गाँव में, मानव तब सुख खोज।३।
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सदा कर्म ही जीव का, देता है फल जान
उद्यत लेकिन कर्म को, भाग्य करे नादान।४।
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गर्भकाल है स्वर्ग या, जीवन से बढ़ नर्क
या लेखा है भाग्य का, अपने अपने तर्क।५।
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गर्भ काल सब एक से, जैसे बन्दी जेल
बाहर आए भूलकर, सब अंदर का खेल।६।
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गर्भकाल में धुल गयी, विगत कर्म की याद
इस कारण जन्मा यहाँ, सदा भाग्य का वाद।७।
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कर्मों से गतिशील है, सुनो भाग्य के पाँव
इसीलिए वो नापता, सुख दुख के हर गाँव।८।
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कहीं सरल हो वो भले, कहीं बहुत ही वक्र
गति पाता है भाग्य से, जन्म मरण का चक्र।९।
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ज्ञान मिले लंकेश सा, दम्भ करे इन्सान
तभी भाग्य से भाग्य का, उसे नहीं है ज्ञान।१०।
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मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
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