तेरी बात अगर छिड़ जाती
जाने तुमको क्या क्या कहता
सूरज चंदा तारे उपवन
झील समंदर दरिया कहता
कहता तेरे होंठ गुलाबी
जैसे सूरज निकल रहा है
कहता बदन तुम्हारा ऐसा
जैसे सोना पिघल रहा है
मै तुमको सम्मोहक कहता
मै मनभावन रत्ना कहता
कहता तेरा रूप बहारों
की तरुणाई के जैसा है
और बदन, कहता संगमरमर
सी चिकनाई के जैसा है
तुमको पूनम की रातों का
जगमग जगमग चंदा कहता
तेरे लहराते बालों को
मै घहराता बादल कहता
तेरी आंखों के काजल को
जादू वाले काजल कहता
तेरी बोली सबसे मीठी
तुमको मधुरभाषिता कहता
कहता समतल उदर मनोहर
और उरस्थल पर्वत घाटी
तुमको मंजुल रमणी कहता
कहता यौवन की परिपाटी
तुमको जैसे देवलोक से
उतरी हुई अप्सरा कहता
मैं शब्दों के रंग घोलकर
पांव महावर से भर देता
मै शब्दों से इत्र बनाता
तुमको खुशबू से भर देता
तुम पर कितनी गजलें कहता
तुम पर कितनी कविता कहता
मौलिक और अप्रकाशित
आशीष यादव
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