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गणतंत्र ( दोहा सप्तक ) -लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'


जन्म दिवस गणतंत्र का, मना रहे हम आज
रखने  को  सौगंध  खा, संविधान  की लाज।।
*
नाम रखा गणतंत्र गह, राजतंत्र की रीत
कैसे हो गण का भला, ऐसे में कह मीत।।
*
संविधान  की  पीठ  ने, रचे  बहुत  से स्वप्न
गण तक पहुँचे वो नहीं, तंत्र कर गया दफ्न।।
*
पथ में बिखरे शूल सब, यदि ले तंत्र समेट
जनसेवक से हो  नहीं, जनता का आखेट।
*
आठ दशक से जप रहे, गण हैं जिसका मंत्र
देता रोक  स्वराज  वह, क्यों पगपग पर तंत्र।।
*
गण की गण से दोस्ती, हो सबका ही मंत्र
बने खिलौना अब नहीं, सत्ता का गणतंत्र।।
*
गण के हित में  तंत्र  जो, करे यहाँ पर काम
तब जाकर होगा कहीं, सार्थक इसका नाम।।
***
मौलिक/अप्रकाशित
-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

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