दोहा पंचक. . . . . उमर
बहुत छुपाया हो गई, व्यक्त उमर की पीर ।
झुर्री में रुक- रुक चला, व्यथित नयन का नीर ।।
साथ उमर के काल का, साया चलता साथ ।
अकस्मात ही छोड़ती, साँस देह का हाथ ।।
बैठे-बैठे सोचती, उमर पुरातन काल ।
शैशव यौवन सब गया, बदली जीवन चाल ।।
दौड़ी जाती जिंदगी, ओझल है ठहराव ।
यादें बीती उम्र की, आँखों में दें स्राव ।।
साथ उमर के हो गए, क्षीण सभी संबंध ।
विचलित करती है बहुत, बीते युग की गंध ।।
सुशील सरना / 28-2-25
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