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दोहा सप्तक. . . . . विविध

मंजिल हर सोपान की, केवल है  अवसान ।

मुश्किल है पहचानना, जीवन के सोपान ।।

 

छोटी-छोटी बात पर, होने लगे तलाक ।
पल में टूटें आजकल, रिश्ते सारे पाक ।।

 

छोटे से परिवार में, सीमित  है औलाद ।
उस पर भी होते नहीं, आपस में संवाद ।।

 

पति-पत्नी के प्रेम का, अजब हुआ है हाल ।
प्रेम जाल में गैर के, दोनों हुए हलाल ।।

 

कत्ल प्रेम में आजकल, हर दिन  होते आम ।
नाता जोड़ें गैर से, फिर होते बदनाम ।।

 

धोखा ही धोखा मिले, प्रेम पाश में आज ।
आडम्बर में प्रेम के, लूटें दैहिक लाज  ।

 

प्रेम नाम पर आजकल, मुश्किल है विश्वास ।
जीवित इसकी आड़ में, होती तन की प्यास ।।

सुशील सरना / 19-8-25

मौलिक एवं अप्रकाशित 

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Comment by Sushil Sarna on August 23, 2025 at 8:49pm
आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सादर प्रणाम - सर सृजन पर आपकी सूक्ष्म समीक्षात्मक उत्तम प्रतिक्रिया का दिल से आभार । सुझावानुसार आवश्यक संशोधन के उपरांत मैं इसे पुनः पोस्ट कर रहा हूँ ।हार्दिक आभार आदरणीय

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 22, 2025 at 2:42pm

 

आदरणीय सुशील सरनाजी, कई तरह के भावों को शाब्दिक करती हुई दोहावली प्रस्तुत हुई है. 

कई दोहे फिर भी थोड़ा और समय चाहते हैं. 

मुश्किल है पहचानना, जीवन के सोपान ।  .........  जीवन के सोपान को पहचानना कैसे या क्यों मुश्किल है इसे ही दूसरे पद में होना था. 
मंजिल हर सोपान की, केवल है  अवसान ।।  ...  .. लेकिन आपने दूसरे पद में एकदम से कथ्य ही बदल दिया. 

 

छोटी-छोटी बात पर, होने लगे तलाक ।
पल में टूटें आजकल, रिश्ते सारे पाक ।। .........   भाव के हिसाब से यह दोहा सार्थक है. 

 

छोटे से परिवार में, दो -दो हैं औलाद ।  ..........    छोटे हैं परिवार अब, अकसर दो औलाद 
उसमें भी होते नहीं, आपस में संवाद ।। ....  .....   किंतु सदस्यों में नहीं, होते हैं संवाद 

 

पति-पत्नी के प्रेम का, अजब हुआ है हाल ।
प्रेम जाल में गैर के, दोनों हुए हलाल ।।  ........ ..  सत्य वचन .. आजकी पीढ़ी के कई दंपत्तियों से सम्बन्धित समाचार वाकई डरा देते हैं 

 

कत्ल प्रेम में आजकल, अब होते हैं आम ........    आजकल और अब एक साथ ? आजकल का अर्थ ही अब है. या अब माने आजकल
नाता जोड़ें गैर से, फिर होते बदनाम ।।

 

धोखा ही धोखा मिले, प्रेम पाश में आज ।  ........  जी .. 
आडम्बर में प्रेम के, लूटें दैहिक लाज  ।

 

प्रेम नाम पर आजकल, मुश्किल है विश्वास ।   ....  आज प्रेम-सम्बन्ध पर, होता कम विश्वास 
जीवित इसकी आड़ में, होती तन की प्यास ।। ...   मधुर भाव की आड़ में, हावी तन की प्यास 

मैंने कुछ दोहों फर पुनर्प्रयास किया है.

आप चाहें तो इन पर और बेहतर काम कर इन्हें और भी सुगढ़ और तार्किक विन्यास दे सकते हैं.  

शुभ-शुभ

 

Comment by Sushil Sarna on August 22, 2025 at 1:18pm

आदरणीय गिरिराज भंडारी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 21, 2025 at 8:45pm

आदरणीय सुशिल भाई , अच्छी दोहा वली की रचना की है , हार्दिक बधाई 

Comment by Sushil Sarna on August 20, 2025 at 9:31pm

आदरणीय जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय । हो सकता आपको लगता है मगर मैं अपने भाव से सन्तुष्ट हूँ सर । सादर नमन 

Comment by Chetan Prakash on August 20, 2025 at 7:00pm

अच्छे कहे जा सकते हैं, दोहे.किन्तु, पहला दोहा, अर्थ- भाव के साथ ही अन्याय कर रहा है।

कृपया ध्यान दे...

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