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अब तो आहट सी रहती है आवाज़ की,

किसी की आवाज़ आये,
तो ज़माना गुज़र गया...
हम तो सपनों को ही,
हकीकत मान बैठे थे,
जाने कब,
सपनों का काफिला भी गुज़र गया...
अब तो बस धुंधली सी परछाई है,
किसी के होने का,
गुमां ही गुम गया...
यादों के पीछे तलक भागे कोई,
पर दिल की आवारगी का क्या हाल कहे
यादों की खूबसूरती में खोकर,
देखो कमबख्त दिल भी,
इन्ही से मोहब्बत कर गया...
भीड़ भरी राहों से गुज़र कर भी कमबख्त, 
बैरी यादों की सुनसान राहों में ही खो गया....

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Comment by AVINASH S BAGDE on March 27, 2012 at 11:56am

पर दिल की आवारगी का क्या हाल कहे......योग्‍यता जी हार्दिक बधाई!

Comment by Harish Bhatt on March 23, 2012 at 2:14pm

योग्‍यता जी नमस्‍कार,,,,,,, वाह क्‍या बात है, बहुत खूब रचना, हार्दिक बधाई

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 23, 2012 at 1:33pm

bhav purna prastuti. badhai.

Comment by वीनस केसरी on March 23, 2012 at 1:28pm
भीड़ भरी राहों से गुज़र कर भी कमबख्त, 
बैरी यादों की सुनसान राहों में ही खो गया....

यादें होती ही ऐसी हैं
मीठी यादें भी हमको बाद में रुलाती हैं

श्रेष्ठ रचना के लिए बधाई
Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on March 23, 2012 at 12:41pm

आदरणीया योग्यता जी,

आपकी इस कृति में गहन भाव उभर कर आये हैं| हार्दिक बधाई!

कृपया ध्यान दे...

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