For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

प्रेमिकाएं और डाक टिकट

अपनी पुरानी  डायरी में से आपके लिए कुछ हाज़िर कर रहा हूँ ! आशा है आपको पसंद आएगा !

ये प्रेमिकाएं बड़ी विकट  होती हैं
बिल्कुल  डाक टिकट होती हैं
क्योंकि जब ये सन्निकट होती हैं
तो आदमी की नीयत में थोडा सा इजाफा हो जाता है !
मगर जब ये चिपक जाती हैं तो
आदमी बिलकुल लिफाफा हो जाता है !!

सम्बन्धों के पानी से
या भावनाओं की गोंद से चिपकी हुई
जब ये साथ चल पड़ती हैं तो
अपने आप में हिस्ट्री बन जाती हैं !
जिंदगी के डाक खाने में उस लिफ़ाफ़े की
रजिस्ट्री बन जाती हैं  !!

यूँ इनके साथ होने पर
लिफ़ाफ़े का अपना एक रंग होता है !
मगर जब ये नहीं होती हैं तो
लिफाफा बेरंग होता है !!

मेरी आप लोगों से विनती है , अरदास है , रिक्वेस्ट है
कि आप अपनी जिंदगी के लिफ़ाफ़े पर
किसी भी मूल्य का , किसी भी साइज़ या आकार का
डाक टिकट चिपकाइए ! मगर
ज़रा सलीके से लगाइये !!

कहीं ऐसा न हो इससे कहीं कोई
दुर्घटना घट  जाए !
और कोई आपके लिफ़ाफ़े का डाक टिकट छुडाने लगे तो
कहीं लिफाफा ही न फट जाए  !!

Views: 879

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Yogi Saraswat on April 2, 2013 at 11:31am

आदरणीया डॉ. प्राची सिंह  जी , सादर अभिवादन ! मेरे शब्दों को आपका आशीर्वाद और समर्थन मिला , बहुत बहुत आभार ! आपकी उत्साहित करती प्रतिक्रिया से दिल प्रसन्न हो गया ! संवाद बनाये रखियेगा ! धन्यवाद

Comment by Yogi Saraswat on April 2, 2013 at 11:30am

आदरणीय श्री संदीप  जी , सादर ! मेरे शब्दों को आपका आशीर्वाद और समर्थन मिला , बहुत बहुत आभार ! संवाद बनाये रखियेगा ! धन्यवाद

Comment by Yogi Saraswat on April 2, 2013 at 11:29am

आदरणीय श्री लक्ष्मन प्रसाद  जी , सादर ! मेरे शब्दों को आपका आशीर्वाद और समर्थन मिला , बहुत बहुत आभार ! संवाद बनाये रखियेगा ! धन्यवाद

Comment by Yogi Saraswat on April 2, 2013 at 11:28am

आदरणीया सावित्री राठोर  जी , सादर ! मेरे शब्दों को आपका आशीर्वाद और समर्थन मिला , बहुत बहुत आभार ! संवाद बनाये रखियेगा ! धन्यवाद

Comment by Yogi Saraswat on April 2, 2013 at 11:27am

आदरणीया कुंती मुकर्जी  जी , सादर ! मेरे शब्दों को आपका आशीर्वाद और समर्थन मिला , बहुत बहुत आभार ! संवाद बनाये रखियेगा ! धन्यवाद

Comment by Yogi Saraswat on April 2, 2013 at 11:26am

आदरणीय श्री जवाहर सिंह जी , सादर ! मेरे शब्दों को आपका आशीर्वाद और समर्थन मिला , बहुत बहुत आभार ! संवाद बनाये रखियेगा ! धन्यवाद

Comment by Yogi Saraswat on April 2, 2013 at 11:24am

आदरणीय श्री सौरभ पाण्डेय जी , सादर ! मैं साहित्य का बहुत ज्यादा तकनीकी ज्ञान नहीं रखता , आप के आशीर्वाद से कुछ लिख लेता हूँ ! इसलिए आशा करता हूँ आपका मार्गदर्शन मुझे अपने आप को मांजने में सहायक सिद्ध होगा ! बहुत बहुत आभार आपका !

Comment by Yogi Saraswat on April 2, 2013 at 11:19am

मेरे  शब्दों को आशीर्वाद देने के लिए आपका बहुत बहुत आभार आदरणीय राजेश कुमारी जी ! संवाद बनाये रखियेगा ! धन्यवाद


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 31, 2013 at 9:23am

यूँ इनके साथ होने पर
लिफ़ाफ़े का अपना एक रंग होता है !
मगर जब ये नहीं होती हैं तो
लिफाफा बेरंग होता है !!-----इन पंक्तियों के लिए पूरे नंबर बहुत मजा आया ये हास्य रचना पढ़कर नासमझो के लिए सीख भी है बहुत-बहुत बधाई


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 31, 2013 at 6:02am

भाई योगी सारस्वत जी, इस हास्य प्रधान रचना के लिए मेरी भूरि-भूरि बधाइयाँ स्वीकार करें. पहले बंद से ही आपकी यह कविता पाठक के मन को बाँध लेती है.

इस तरह की कविताओं की आत्मा शब्द-संचयन के साथ-साथ सटीक शब्दों के संयमित प्रयोग हुआ करती है. मेरे कहे का बहुत ही सुन्दर उदाहरण इसी कविता का प्रारम्भ है. आखिर के बंदों में रचना की नैसर्गिक सहजता अति आत्मविश्वास  --इस कारण हुई शाब्दिकता--  से थोड़ी असहज सी हुई प्रतीत है, लेकिन तबतक रचना ही समाप्त हो जाती है.

एक सफल हास्य रचना के लिए अतिशय बधाइयाँ.

सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
". तू है तो तेरा जलवा दिखाने के लिए आ नफ़रत को ख़ुदाया! तू मिटाने के लिए आ. . ज़ुल्मत ने किया घर तेरे…"
45 minutes ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आ. लक्ष्मण जी,मतला भरपूर हुआ है .. जिसके लिए बधाई.अन्य शेर थोडा बहुत पुनरीक्षण मांग रहे…"
1 hour ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आ. आज़ी तमाम भाई,मतला जैसा आ. तिलकराज सर ने बताया, हो नहीं पाया है. आपको इसे पुन: कहने का प्रयास…"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। बहुत खूबसूरत गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"221 1221 1221 122**भटके हैं सभी, राह दिखाने के लिए आइन्सान को इन्सान बनाने के लिए आ।१।*धरती पे…"
5 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"ग़ज़ल अच्छी है, लेकिन कुछ बारीकियों पर ध्यान देना ज़रूरी है। बस उनकी बात है। ये तर्क-ए-तअल्लुक भी…"
9 hours ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"२२१ १२२१ १२२१ १२२ ये तर्क-ए-तअल्लुक भी मिटाने के लिये आ मैं ग़ैर हूँ तो ग़ैर जताने के लिये…"
11 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )

चली आयी है मिलने फिर किधर से१२२२   १२२२    १२२जो बच्चे दूर हैं माँ –बाप – घर सेवो पत्ते गिर चुके…See More
12 hours ago
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय निलेश सर ग़ज़ल पर नज़र ए करम का देखिये आदरणीय तीसरे शे'र में सुधार…"
17 hours ago
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"आदरणीय भंडारी जी बहुत बहुत शुक्रिया ग़ज़ल पर ज़र्रा नवाज़ी का सादर"
17 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"  आदरणीय सुशील सरनाजी, कई तरह के भावों को शाब्दिक करती हुई दोहावली प्रस्तुत हुई…"
21 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

कुंडलिया. . . . .

कुंडलिया. . .चमकी चाँदी  केश  में, कहे उमर  का खेल ।स्याह केश  लौटें  नहीं, खूब   लगाओ  तेल ।खूब …See More
21 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service