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चाँद की बात न कर

न मौसम बदलता है,

न एहसान चढाता है

न जलता-जलाता,

बस खुद को लुटाता है

 

समझता है .मेरी व्यथा

जी जान से

मेरी थकान मिटाता है 

दुबला जाता कैसे

मेरे गम में

 

और पाकर मुझे

कुप्पे सा फूल जाता है

 

चाँद की बात न कर

वह तो हर रात नया रूप

यौवन भरपूर..

मुझे रिझाने में जुटा

 

उसका यह सिलसिला तो

सदियों से है...

 

उसके जैसी चाह

उसके जैसी शोखी

और भला किस में है ?

 

प्रेमियों का प्रेम है

मेरे इस चाँद की बात न कर... !! 

(मौलिक व अप्रकाशित )

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Comment by Vasundhara pandey on August 14, 2013 at 9:39am

आपके स्नेहाभिक्त टिप्पड़ी के लिए आभारी हूँ सर , बहुत-बहुत धन्यवाद, सादर प्रणाम !!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 13, 2013 at 9:41am

एकाधिकार का उद्घोष तभी संभव है जब उत्कट प्रेम चर्चा बनने लगे. सच है, आत्मीयता में बहुत बल है ! काल से परे जाकर अपने स्व को अभिव्यक्त होते देखना सुखद लगा. इसलिये भी कि आपकी कोई पहली रचना पढ़ रहा हूँ, शायद.

प्रस्तुति अच्छी भी लगी और आशान्वित करती हुई भी है.  सादर स्वागत है, आदरणीया.

बहुत-बहुत शुभकामनाएँ.

 

Comment by Vasundhara pandey on August 9, 2013 at 4:30pm

केतन जी आभार...!!

Comment by Ketan Parmar on August 8, 2013 at 4:35pm

BAHUT ACHI RACHNA BADHAAI SWEEKARE MAM

Comment by Vasundhara pandey on August 7, 2013 at 11:44am

विजय सर जी स्नेह के लिए हार्दिक आभार ,प्रणाम !!

Comment by Vasundhara pandey on August 7, 2013 at 11:44am

शुभ्रा जी ,हार्दिक आभार...धन्यवाद आपको..!!

Comment by Vasundhara pandey on August 7, 2013 at 11:43am

अरुण जी बहुत बहुत धन्यवाद आपको...!!

Comment by Vasundhara pandey on August 7, 2013 at 11:42am

विनीता जी स्नेह के लिए आभार , प्रणाम !

Comment by vijay nikore on August 7, 2013 at 11:02am

आदरणीया वसुंधरा जी:

 

सुन्दर भाव पिरोए हैं...बधाई।

 

सादर,

विजय निकोर

Comment by shubhra sharma on August 7, 2013 at 10:55am

वसुंधरा जी बहुत सुन्दर रचना के लिए शुभकामना और बधाई स्वीकार करे 

कृपया ध्यान दे...

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