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जख्म, तकदीर और मैं

जख्म भरता नहीं.. दर्द थमता नहीं,

कितनी भी कोशिश कर ले कोई,

तकदीर का लिखा मिटता नहीं ...

चलता ही रहता है, जिंदगी का सफ़र,

कोई किसी के लिए, यहाँ रुकता नहीं..

 

खुद ही सहने होंगे सारे गम,

किसी की मौत पर कोई मरता नहीं,

हंसने पर तो दुनिया भी हंसती है संग,

हमारे अश्को पर, कोई पलकें भिगोता नहीं ...

 

आज दर्द हद से गुजर जायेगा जैसे,

कोई बढ़कर साथ देता नहीं,

जिंदगी तुझसे गिला भी क्या करे,

वक़्त से पहले, तकदीर से ज्यादा,

किसी को कभी, मिलता भी नहीं ...

 

!!अनु!!

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Comment by rajendra kumar on March 5, 2011 at 1:32pm
जख्म भरता नहीं.. दर्द थमता नहीं,
कितनी भी कोशिश कर ले कोई,

वाह सचमुच आपने अपनी कविता के माध्‍यम से जख्‍म की जो कल्‍पना की है तथा उसे शब्‍दों में पिरोकर प्रस्‍तुत किया है, उसे पढ्कर मुझे बहुत अच्‍छा लगा, बेशक आपकी कविता लाजवाब ही नहीं, बल्कि बहुत बहुत अच्‍छी है

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on January 14, 2011 at 11:12am

आज की भागती दौड़ती जिनगी के बीच बिलकुल सार्थक रचना , बेहतर ख्यालात , अंतिम पक्तियों पर नजरेशानी की आवश्यकता है .......

जिंदगी तुझसे गिला भी क्या करे,

वक़्त से पहले, तकदीर से ज्यादा,

किसी को कभी, कुछ मिलता भी नहीं ...

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