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याद रखना, कुछ बातें ज़ुबां से न कहीं जातीं हैं।

अब ये तन्हाइयाँ हमें डरातीं हैं,
अक्सर तुम्हारी याद दिलातीं हैं।
ये होंठ ख़ामोश रहते हैं अब तो
और आँखें बस आँसू बहातीं हैं।
तुम मुझसे इतने दूर हो गए क्यूँ
कि न ख़बरें तुम्हारी पास आतीं हैं।
यूँ तो कुछ भी नहीं रहा पहले-सा
जाने क्यूँ तुम्हारी यादें सतातीं हैं।
हर दिन बीतता है तेरे इंतज़ार में,
न तू और न हिचकियाँ ही आतीं हैं।
तुझे देखे हुए,सुने हुए अरसा बीता,
पर तेरी बातें मुझे अब भी रूलातीं हैं।
अपनी मुहब्बत का यकीं दिलाऊँ तुझे कैसे,
ये ज़ुबां,ये आँखें न तुमसे कुछ कह पातीं हैं।
कहने-सुनने को अभी बहुत कुछ बाकी है,
पर मुझे तुम्हारी खामोशियाँ मार जातीं हैं।
तेरे लिए तिल-तिल मरने का ग़म नहीं मुझे,
याद रखना, कुछ बातें ज़ुबां से न कहीं जातीं हैं।
'सावित्री राठौर'
[मौलिक एवं अप्रकाशित]

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Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on May 9, 2014 at 10:06am

तेरे लिए तिल-तिल मरने का ग़म नहीं मुझे,
याद रखना, कुछ बातें ज़ुबां से न कहीं जातीं हैं। 

बहुत खूब 

सादर बधाई 

Comment by Savitri Rathore on November 27, 2013 at 7:11pm

आदरणीय बसंत जी,जितेन्द्र जी और विजय जी नमस्कार ! मेरी भावाभिव्यक्ति को आत्मसात करने हेतु धन्यवाद।

Comment by विजय मिश्र on November 25, 2013 at 3:52pm
अंतर्मन की व्यथा रचना रूप में अभिव्यक्त , सुंदर ,साधुवाद सावित्रीजी
Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on November 24, 2013 at 9:38am

सच! इन्सान कुछ अपने अन्तर की भावनाएं, बयां नहीं कर सकता, सुंदर रचना पर बधाई स्वीकारें आदरणीया सावित्री जी

Comment by बसंत नेमा on November 23, 2013 at 3:03pm

आदरणीया जी ...बहुत सुन्दर भाव दिल के दर्द् को बहुत ही खुबसुरत अन्दाज मे बँया किया है आप ने लेखनी से ....... बधाई शुभकामनाये 

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