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शिव-मंगल (खण्ड-काव्य) सॆ मत्तगयंद सवैया :-

शिव-मंगल (खण्ड-काव्य) सॆ मंगलाचरण कॆ कुछ छन्द
====================================

शिल्प विधान = सात भगण + दॊ गुरु वर्णॊं सहित प्रत्यॆक चरण मॆं कुल २३ वर्ण,,,,,,,,,


मत्तगयंद सवैया छन्द (१)
================
पूजत है प्रथमॆ जग जाकहुँ, कीर्ति त्रिलॊकहुँ छाइ रही है !!
सुण्ड-त्रिपुण्ड लुभाइ रही अति,कंठहिं माल सुहाइ रही है !!
रिद्धि बसै दहिनॆ अरु बामहिँ,सिद्धि खड़ी मुसकाइ रही है !!
हॆ इक दन्त कृपा करियॊ अब, मॊरि मती बउराइ रही है !!


मत्तगयंद सवैया छन्द (२)
================
मैं मतिमंद विवॆक नहीं कछु, सत्य कहौं तुम लॆहु निभाई !! 
तज्ञ नहीं रस ढंग नहीं कस, भाँषि सकौं कविता निपुणाई !!
पिङ्गल कॆ कछु सूत्र न जानउँ, ऊँच पहारि चढ़ै कस राई !!
छन्द प्रबन्ध तभी रचता कवि, कन्ठ बसॆ जब शारद माई !!


मत्तगयंद सवैया छन्द (३)
================
अम्ब सुनॊ जगदम्ब सुनॊ अब,बालक द्वार खड़ा गुहरावै !!
चाँउर कुंकुम लै चुनरी पट, वॆद- विधान लिखॆ गुण गावै !!
मातु भरी ममता हिय मॆं इक,बूँद झरै मम प्यास बुझावै !!
ब्यास-भुसुण्डि कहैं ऋषि नारद,तॊरि निहॊर सदासुख पावै !!

कवि-"राज बुन्दॆली"

०२/०१/२०१४

पूर्णत: मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 2332

Comment

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 8, 2014 at 10:22pm

भाई राजबुन्देलीजी, आपसे कोई खता या गलती आदि नहीं हुई है. :-)))
आपको खण्ड-काव्य लिखने की प्रेरणा माँ शारदा से मिली है, यह इस मंच के लिए भी हर्ष का विषय है.

मैं वस्तुतः आपका ध्यान छंद शास्त्र के एक महीन तथ्य की ओर खींचना चाहता हूँ. ये सामान्य वर्ण और मात्रिकता से आगे के तथ्य हैं.  इसकी जानकारी आपके छंद-कर्म के कारण ही आपसे साझा कर रहा हूँ.


आपने अशुद्ध अक्षर या दग्धाक्षर के बारे में अवश्य सुना होगा.

ये वे अक्षर हैं जिनसे किसी काव्य का प्रारम्भ होना छंद शास्त्र के अनुसार अशुद्ध माना जाता है. विशेषकर किसी काव्य का  मंगलाचरण.
इनका बर्ताव छंद-रचनाओं के क्रम में शुभाशुभ के फल को ध्यान में रखते हुए किया जाता है.  

आइये हम जाने कि शुद्ध और अशुद्ध अक्षर कौन-कौन से हैं.

शुद्ध अक्षर :
कवर्ग से सभी व्यंजन किन्तु ङ को छोड़ कर,
चवर्ग से सभी व्यंजन किन्तु झ और ञ को छोड़ कर,
टवर्ग से कोई व्यंजन नहीं किन्तु ड शुद्ध है,
तवर्ग से सभी व्यंजन किन्तु त तथा थ को छोड़,
पवर्ग से कोई व्यंजन नहीं
य, श, स, क्ष (कुल १५ अक्षर)

अशुद्ध अक्षर या दग्धाक्षर :
शुद्ध अक्षर से बचे सभी अक्षर (कुल १९ अक्षर)

लेकिन प्रमुख रूप से पाँच ऐसे व्यंजन हैं जिनका प्रयोग प्रथमाचरण के रूप में कत्तई न हो, यथा, झ ह र भ ष.

परिहार के तौर पर यानि छूट के तौर पर यह अवश्य कहा जाता है कि या तो ये अशुद्ध अक्षर ईश्वर या मंगलवाची शब्द का निर्माण का कारण हों या इनके साथ गुरु की मात्रा हो.

अब आप तुलसी बाबा के रामचरित मानस या अन्य काव्यों को देख जाइयेगा. कि, क्या अशुद्ध अक्षरों से किसी खण्ड का प्रारम्भ हुआ है ! आप शर्तिया दंग रह जायेंगे.

दूसरे,
आपने मंगलाचरण के जिन तीन छंदों की चर्चा अपनी टिप्पणी में की है उनके प्रथमाक्षर को देखिये. ये ईश्वर की महती कृपा से क्रमशः आ, श तथा क से प्रारम्भ हुए हैं.
जबकि उपरोक्त प्रस्तुति में प्रथम दो छंदों का प्रारम्भ पवर्ग के व्यंजनों से हुई है.

मेरा यही कहना था. 

शुभेच्छाएँ

Comment by कवि - राज बुन्दॆली on January 8, 2014 at 9:59pm

आदरणीय,,,,Saurabh Pandey ,सर जी,,सादर प्रणाम,,,,,,,,,,,यह छन्द पहलॆ नहीं थॆ अभी लिखे हैं,,,,,और अब मंगलाचरण मॆं पूर्व छन्द के रूप मॆं शामिल किया है इसके पहले जो छन्द शुरुवात कॆ थे,,,,,,,,जो पूर्व मॆं प्रकाशित हो चुके हैं,,,,,पिछलॆ वर्ष महाशिवरात्रि कॊ,,,,अपने इसी मंच पर,,,,,,वह छन्द निम्न प्रकार हैं,,,,,,,

मत्तगयंद सवैया :-
================
आदि अनादि अनंत अगॊचर,काम न छॊभ न मॊह न माया !!
तॆज प्रचंड त्रि-खंड अलौकिक,ब्याधि अगाधि दुखादि मिटाया !!
संत अनंत न जानि सकॆ कछु, वारिद बीच बसै कसि काया !!
भाषहिँ वॆद  पुराण सुधी जनि, पार न  काहु रती भर पाया !!

मत्तगयंद सवैया :-
================
शारद, शॆष, सुरॆश  दिनॆशहुँ, ईश  कपीश गनॆश मनाऊँ ॥
पूजउँ राम सिया पद-पंकज, शीश गिरीश खगॆशहिं नाऊँ ॥
बंदउँ  चारहु  बॆद  भगीरथ, गंग  तरंगहिं  जाइ नहाऊँ ॥
मातु-पिता-गुरु आशिष माँगउँ, शंभु बरात विवाहु सुनाऊँ ॥
=======================================
सवैया (दुर्मिल)
============
कवि कॊबिद हार गयॆ सबहीं,नहिँ भाँषि सकॆ महिमा हर की !!
प्रभु आशिष दॆहु बहै कविता, सरिता सम कण्ठ चराचर की !!
नित नैन खुलॆ दिन रैन मिलॆ, समुहैं छवि शैलसुता वर की !!
कवि राज गुहार करैं तुम तॆ, विनती त्रिपुरारि सुनॊ स्वर की !!
=======================================
यदि यह छन्द पॊस्ट करनॆ कॆ कारण किसी प्रकार की ख़ता हुई है तो मैं मंच से हांथ जॊड़ कर क्षमा प्रार्थी हूं,,,,,,


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 8, 2014 at 8:31pm

आपकी प्रस्तुति पर कुछ कहने के पूर्व आपसे एक प्रश्न करना है, आपके खण्ड काव्य के मंगलाचरण के ये पहले तीन छंद हैं या मंगलाचरण से लिये गये कुछ छंद हैं ? यदि नहीं, तो पहले कुछ छंद क्या हैं ?
शुभेच्छाएँ

Comment by कवि - राज बुन्दॆली on January 4, 2014 at 10:47pm

आदरणीय,,, ,अरुन शर्मा 'अनन्त',जी,,,,भाई साहब आपका दिल की गहराइयॊं से आभार,,,,,,,,

Comment by अरुन 'अनन्त' on January 4, 2014 at 5:18pm

आदरणीय राज बुन्देली साहब वाह वाह वाह मन प्रसन्न हो गया इतने सुन्दर हृदयस्पर्शी सवैया पढ़कर एक एक सवैया पर ढेरो ढेरों मुबारकबाद स्वीकार करें. जय हो जय माँ शारदे.

Comment by कवि - राज बुन्दॆली on January 4, 2014 at 3:09pm

आदरणीय,,, गिरिराज भंडारी ,,जी,,,,भाई साहब आपकॊ इस स्नेह हेतु दिल से आभार,,,,,,,,

Comment by कवि - राज बुन्दॆली on January 4, 2014 at 3:08pm

आदरणीय,,,, Sushil Sarna ,जी,,,,भाई साहब आपकाबहुत बहुत शुक्रिया,,,

Comment by कवि - राज बुन्दॆली on January 4, 2014 at 3:07pm

आदरणीय,,,Shyam Narain Verma ,,जी,,,,भाई साहब आपका दिल की गहराइयॊं से आभार,,,,,,,,


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 2, 2014 at 8:54pm

आदरणीय राज बुन्देली भाई , !!! लाजवाब !!! पढ़ के मन तृप्त हो गया भाई ॥ बहुत बहुत बधाई ॥

Comment by Sushil Sarna on January 2, 2014 at 5:59pm

ati sundr bhaavon ko darshaate in chhandon kee prastuti ke liye haardik badhaaee SIR

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