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वह आकाश में परिंदे की तरह उड़ रही थी ।माँ निश्चिन्त थी की बेटी तरक्की कर रही और पिता आजादी दे समय से ताल मिला रहे थे।बेटी के सोने -जागने , आने जाने से किसी का कोई सरोकार नहीं था।

" पापा मेरी तबियत खराब हो गयी है ।"

मुँह अँधेरे होटल पंहुचे पिता अपनी पुत्री को अस्त व्यस्त और नशे में डूबी देख समझ चुके थे की क्या घट चुका है।

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by harikishan ojha on April 29, 2015 at 12:05pm

bahut aacha likah hai aap ne aaj ke jamane ka yahi hal hai
dhanyawad

Comment by Archana Tripathi on April 27, 2015 at 11:38pm
शुक्रिया Ssaurabh Pandey ji ,आभार आपका ।सदैव मार्गदर्शन की अभिलाषी

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 27, 2015 at 11:32pm

स्वच्छंदता और स्वतंत्रता का अंतर जो माँ-बाप बच्चों को न समझा सकें, उनके बच्चों की दशा अकसर दयनीय ही हो जाती है, इस लघुकथा की नायिका की तरह.

सचेत करती इस लघुकथा के लिए, आदरणीया अर्चनाजी, हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनाएँ. 

Comment by Archana Tripathi on April 27, 2015 at 11:20pm
आभार जितेन्द्र पस्टारिया जी ,आप जैसे मित्रो का मार्गदर्शन सदैव मिलता रहे यही कामना
Comment by Archana Tripathi on April 27, 2015 at 11:14pm
आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी आपकी अमूल्य टिप्पणी के लिए आभारी हूँ आपकी ।
Comment by Archana Tripathi on April 27, 2015 at 11:10pm
शुक्रिया निधि अग्रवाल जी आभारी हूँ ,रचना पर अमूल्य समय देने के लिए
Comment by Archana Tripathi on April 27, 2015 at 11:07pm
शुक्रिया आदरणीय Dr. Vijay Shanker ji ,सदैव मार्गदर्शन की आकांक्षी
Comment by Archana Tripathi on April 27, 2015 at 11:04pm
शुक्रिया अमन कुमार जी,मार्गदर्शन के लिए ।
Comment by Archana Tripathi on April 27, 2015 at 10:59pm
शिज्जु शकूर जी,रचना को अमूल्य समय देने के लिए आभारी हूँ ।सदैव मार्गदर्शन की आकांक्षी
Comment by Archana Tripathi on April 27, 2015 at 10:56pm
Krishna Mishra 'jaan'gorakhpur ji , आभार आपका रचना पर अमूल्य समय देने के लिए ।सदैव मार्गदर्शन की आकांक्षी

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