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Archana Tripathi's Blog (10)

लघुकथा

प्रतिफल

चन्द दिनों मे ही पर्याप्त नींद लेकर मैं स्वस्थ सी लगने लगी थी। उसमे करना भी कुछ ना था बस एकाग्रचित्त होकर मंत्र का मानसिक जाप करना था। आज पुनः उनके पास जाना था ।निलय किसी भी सूरत चलने को तैयार ना थे।दरअसल उन्हें विश्वास भी ना था इन बातों पर। मेरे अंदर की लालसा ने, कुछ धर्मगुरुओं द्वारा किये गलत आचरण को भी परे कर दिया था।

" गुरुजी मेरे विवाह को दस वर्ष हो चुके हैं,लेकिन हम संतान सुख से वंचित हैं और इलाज कराते कराते थक गए हैं।"

कुछ गणना के पश्चात , " आपको दवा, दुआ…

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Added by Archana Tripathi on June 17, 2019 at 3:18am — No Comments

औपचारिक्ता की दरकार

औपचारिक्ता की दरकार "

" पागलों की तरह भागते हुए लेक्चरर शिल्पी ने कॉलेज में आये उस नवयुवक को आलिंगन में यूँ जकड़ लिया जैसे वह भाग ना पाये।यह बात पुरे कालेज में जंगल में आग की तरह फैल गयी।जितने मुँह उतनी बातें और उतने ही लांछन!

अपने ऊपर लगते लांछनों ने उसे भीतर तक तोड़ दिया और आज तो उनकी पराकाष्ठा हो गयी थी ।लेकिन कभी-भी हार ना मानने वाली शिल्पी सभ्य सहयोगियों से दो-चार हो ली।



" मैं क्यों बदचलन आवारा हूँ कोई बताएगा मुझे ? क्योकि मैं सबसे हँसकर बात करती हूँ? क्योकि मैंने… Continue

Added by Archana Tripathi on February 18, 2016 at 3:34pm — 8 Comments

कंगली (लघुकथा )

साक्षी ने सारी सीमाएं विवाह पूर्व ही तोड़ दी थी ।विवश हो उसके प्रेम विवाह को सहमति देनी पड़ी लेकिन विवाह के मात्र आठ माह बाद तीन माह की पुत्री को लेकर लौट आयी थी । बिटिया तीन वर्ष की हो गयी थी ।साक्षी ने पुनः विवाह कर लिया बेटी ननिहाल में ही पल रही थी।इसी बात से संतोष था की वह ससुराल में रम जाय लेकिन -

" माँ अब मैं उस घर नहीं जाउंगी।"



"क्यों ? अब क्या हो गया ?"



"उसे पत्नी नहीं माँ के लिए नौकरानी चाहिए थी और वह तो पूरा कंगला हैं ,मैंने तो उसकी चमक देख ब्याह किया… Continue

Added by Archana Tripathi on October 27, 2015 at 11:52pm — 13 Comments

वंश वृद्धि (लघुकथा)

कवि सम्मेलन के आगाज़ के साथ ही नवांकुर कवि के कविता पाठ करते ही मरघट सा सन्नाटा पसर गया।बामुश्किल नामी कवी ने बात आगे बढ़ाते हुए कहा -

" इन्हें कलम चलानी तो आती नहीं फिर माहौल खराब करने के लिए यहाँ किसने आमन्त्रित किया हैं ?"

" अरे , शर्मा जी इन नवांकुरों को मैंने आमन्त्रित किया हैं ।इन्हें सिखाना भी तो जरुरी हैं।"

" ये केवल नाम बटोरना चाहते हैं ,लगन मेहनत से कोई वास्ता नहीं इनका।इन्हें मंच से हटाया जाय "

"शर्मा जी, ये हमे अपना आदर्श मानते हैं "

" तो हम ही मंच छोड़ देते…

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Added by Archana Tripathi on September 14, 2015 at 12:46am — 24 Comments

सामन्जस्य की परिभाषा (लघुकथा )

प्रतियोगी परीक्षाओं में मिली असफलता से निखिल अवसादग्रस्त हो चला था। पत्नी स्नेहा को मिली नौकरी से गृहस्थी की गाडी सुचारू रूप से चलने लगी थी।लेकिन दोहरी जिम्मेदारी के बोझ तले वह बुरी तरह पीस रही थी। जिसका असर उसके व्यवहार में भी परिलक्षित हो रहा था ।

आज घर में घुसते ही साफ -सुथरा घर , और टेबल पर लगे खाने से आती खुशबू से स्नेहा भौचक्की थी, की निखिल कहने लगा -



"पढ़ते-पढ़ते थक गया था सो खाना बना लिया। शायद तुम्हे पसंद आ जाए। "

पसंद-नापसन्द से परे वह अपने घर में पति-पत्नी के मध्य… Continue

Added by Archana Tripathi on August 27, 2015 at 4:34pm — 9 Comments

पराश्रित तो नहीं (लघुकथा )

"मम्मी स्कूल की नौकरी , बिट्टू को पढ़ाने के बाद रात का खाना बनाना मेरे बस की बात नहीं हैं।"
"लेकिन बहू घर का अन्य काम तो इस उम्र में भी मैं ही करती हूँ तो क्या तुम एक समय का खाना भी नहीं बना सकती ?"
"नहीं बना सकती क्योकि मैं नौकरी करती हूँ , आपकी तरह घर में नहीं बैठी रहती "
ससुरजी हस्तक्षेप करते हुए -
"बस बहुत हो गया बहू , आज से तुम अपनी गृहस्थी देखो और हम अपनी जिम्मेदारी खुद उठा लेंगे और फिर हम पराश्रित भी तो नहीं हैं ।"

मौलिक और अप्रकाशित

Added by Archana Tripathi on August 21, 2015 at 12:00am — 15 Comments

मौका नहीं सौदा (लघुकथा)

"मैं तुम लोगों को लेने आया हूँ "
"इतना गलत कार्य करने के बाद भी इतनी हिम्मत!"
"क्या पुरानी बातों को भुला कर, नया जीवन नहीं शुरू नहीं कर सकते "
"क्या भरोसा की तुम उन बातों की पुनरावृत्ति नहीं करोगे?"
"एक मौका दे दो मुझे"
"अब तुम्हे मौका नहीं दिया जा सकता बल्कि एक सौदा किया जा सकता हैं ,मेरे जेवर उतना धन दोनों बेटियों के नाम बैंक में जमा करों जो तुम जुऐं में लूटा चुके हो।अन्यथा मेरे दरवाजे तुम्हारे लिए सदैव बंद हैं।"

मौलिक और अप्रकाशित

Added by Archana Tripathi on July 26, 2015 at 2:00am — 2 Comments

भूस्खलन इंसानियत का (लघुकथा)

लगातार हो रही वर्षा के पश्चात पुनः विद्यालय सुचारू रूप से चलना शुरू ही हुआ था कि चीख-पुकार मच गयी सभी अपनी -अपनी जान बचाकर भाग रहे थे।नया विवादित भवन पहली ही बरसात में विद्यार्थी और शिक्षकों की कब्र में परिवर्तित हो गया ।अधिकारीयों का तांता लगा रहा तत्काल प्रभाव से भेजी गयी रिपोर्ट में भवन का खण्डहर होने का कारण -
" अत्यधिक वर्षा से भूस्खलन " था।

और ठेकेदार की बहुमंजिली कोठी बरसते सावन में घी के दीयों से जगमगा रही थी।

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Archana Tripathi on July 13, 2015 at 11:30pm — 13 Comments

काश (लघु कथा )

वह आकाश में परिंदे की तरह उड़ रही थी ।माँ निश्चिन्त थी की बेटी तरक्की कर रही और पिता आजादी दे समय से ताल मिला रहे थे।बेटी के सोने -जागने , आने जाने से किसी का कोई सरोकार नहीं था।

" पापा मेरी तबियत खराब हो गयी है ।"

मुँह अँधेरे होटल पंहुचे पिता अपनी पुत्री को अस्त व्यस्त और नशे में डूबी देख समझ चुके थे की क्या घट चुका है।

(मौलिक व अप्रकाशित)

Added by Archana Tripathi on April 24, 2015 at 8:30am — 21 Comments

चेहरे पे चेहरा ( लघुकथा )

स्त्री का सम्मान , आजादी और शिक्षा के लिए भरपूर प्रयास करने जैसी ढेरों आदर्श वादी बातों से प्रभावित स्नेहा लेक्चरर साहब घर जा पहुंची।
दस्तक से पूर्व ही कर्कश आवाज " खबरदार बिना मेरी अनुमति के कोई परिवर्तन किया तो लात मार घर से निकाल दूंगा I"

(मौलिक और अप्रकाशित)

Added by Archana Tripathi on April 24, 2015 at 1:00am — 9 Comments

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