For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

पराश्रित तो नहीं (लघुकथा )

"मम्मी स्कूल की नौकरी , बिट्टू को पढ़ाने के बाद रात का खाना बनाना मेरे बस की बात नहीं हैं।"
"लेकिन बहू घर का अन्य काम तो इस उम्र में भी मैं ही करती हूँ तो क्या तुम एक समय का खाना भी नहीं बना सकती ?"
"नहीं बना सकती क्योकि मैं नौकरी करती हूँ , आपकी तरह घर में नहीं बैठी रहती "
ससुरजी हस्तक्षेप करते हुए -
"बस बहुत हो गया बहू , आज से तुम अपनी गृहस्थी देखो और हम अपनी जिम्मेदारी खुद उठा लेंगे और फिर हम पराश्रित भी तो नहीं हैं ।"

मौलिक और अप्रकाशित

Views: 697

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Archana Tripathi on August 25, 2015 at 11:54pm
शुक्रिया राजेश कुमारी जी ,कथा पर इतनी गहनता से विचार ककरने और अमूल्य समय देने के लिए हार्दिक आभार।
Comment by Archana Tripathi on August 25, 2015 at 11:50pm
शुक्रिया गिरिराज भंडारी जी, आपका हार्दिक धन्यवाद|
Comment by Archana Tripathi on August 25, 2015 at 11:49pm
शुक्रिया जीतेन्द्र पस्टारिया जी रचना पर अमूल्य समय देने के लिए

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 25, 2015 at 1:02pm

सब अपना अपना कम्फर्ट देखते हैं थोड़ी सूझ बूझ के साथ ये समस्याएं हल की जा सकती हैं ये बात भी सच है की बुजुर्गावस्था में सास का किचेन में घुसे रहना मुनासिब नहीं होता वो भी आराम चाहती है जो बहु नौकरी करती हैं वो खुद इतनी थक जाती हैं की उनकी बात भी अपनी जगह सही है यदि आर्थिक रूप से संपन्न हैं तो किसी को खाना बनाने के लिए रख सकते हैं दोनों अपनी अपनी तनख्वा से इतनी मदद तो कर ही सकते हैं यदि आर्थिक स्थिति सही नहीं है तो शारीरिक रूप से काम को सब बांट कर कर सकते हैं ...किन्तु सबसे बड़ी परेशानी है की एक दुसरे को झेलना नहीं चाहते जहाँ बेटा बहु स्वतंत्रता चाहते हैं वहीँ सेल्फ डीपेंडेंट स्वाभिमानी सास ससुर भी अपनी लाइफ अपने तरीके से जीना चाहते हैं |कहानी बहुत से प्रश्नों को सामने लाती है बहुत अच्छी लगी हार्दिक बधाई आपको | 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 25, 2015 at 9:58am

पारिवारिक कलह की सुरूवात ऐसे ही होती है , अच्छी लगी आपकी लघु कथा ! बधाई आपको ।

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on August 25, 2015 at 3:41am

परिवार ही से ऐसे कई उठे सवालों और चिंतन को सरोकार करती बहुत ही बढ़िया लघुकथा. बधाई स्वीकारें आदरणीया अर्चना जी

Comment by Archana Tripathi on August 24, 2015 at 1:31am
आ.मिथिलेश वामनकर जी आपने रचना को अमूल्य समय दिया जिसके लिए आपकी आभारी हूँ।
यह तो हमारा सामजिक ढांचा ही इसतरह निर्मित हो चूका हैं की पुरुष अगर सहयोग दे भी दे तो उसपर अनेको अलंकार पहन दिए जाते हैं धीरे धीरे परिवर्तन आ रहा हैं जो समय की मांग भी हैं ।सादर
Comment by Archana Tripathi on August 24, 2015 at 1:26am
आ.कांता राय जी ,डा.गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी,ओमप्रकाश क्षत्रियजी ,तेज वीर सिंह जी ,प्रतिभा पाण्डेय जी और ममता जी आप सभी मित्रों का रचना को अमूल्य समय देने और समीक्षात्मक टिप्पणी के लिए हार्दिक आभार ।सदैव मार्गदर्शन करते रहिये।
Comment by kanta roy on August 22, 2015 at 6:37pm
बहुत खूब लघुकथा हुई है आदरणीया अर्चना त्रिपाठी जी । बधाई स्वीकार करें ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on August 22, 2015 at 5:26pm

इस लघुकथा को पढ़कर विचार आया कि खाना बनाने की उम्मीद सास और बहू से ही की जाती है, पता नहीं बेटे और ससुर के दायित्व इतने कम क्यों नियत है. सब नीयत की बात है....

बहरहाल इस सशक्त लघुकथा पर हार्दिक बधाई आपको आदरणीया अर्चना जी 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
3 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
19 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
yesterday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार आपका शुक्रगुज़ार हूँ आपने वक़्त दिया यथा शीघ्र आवश्यक सुधार करता हूँ…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आपकी। इतनी सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा है। कुछ शेर अच्छे लगे। बधई स्वीकार करें।"
Sunday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"सहृदय शुक्रिया ज़र्रा नवाज़ी का आदरणीय धामी सर"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​आपकी टिप्पणी एवं प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service