कवि सम्मेलन के आगाज़ के साथ ही नवांकुर कवि के कविता पाठ करते ही मरघट सा सन्नाटा पसर गया।बामुश्किल नामी कवी ने बात आगे बढ़ाते हुए कहा -
" इन्हें कलम चलानी तो आती नहीं फिर माहौल खराब करने के लिए यहाँ किसने आमन्त्रित किया हैं ?"
" अरे , शर्मा जी इन नवांकुरों को मैंने आमन्त्रित किया हैं ।इन्हें सिखाना भी तो जरुरी हैं।"
" ये केवल नाम बटोरना चाहते हैं ,लगन मेहनत से कोई वास्ता नहीं इनका।इन्हें मंच से हटाया जाय "
"शर्मा जी, ये हमे अपना आदर्श मानते हैं "
" तो हम ही मंच छोड़ देते हैं।"
"नहीं -नहीं आप सब ना जाए लेकिन मैं यह नहीं जानता था की आपका वंश वृद्धि से कोई सरोकार नहीं हैं
(मौलिक और अप्रकाशित)
Comment
अर्चना जी बहुत ही सुन्दर विषय पर प्रस्तुति आपसे थोडा और समय चाहती थी --रचना कर्म में जल्दबाजी न करें और कई बार पढ़कर उसे माँजना चाहें .
नवाकुरों को स्थापित रचनाकार स्थान नहीं देते यह सत्य है, सुंदर सन्देश देती लघुकथा के लिए बधाई
आदरणीया अर्चना जी वर्तमान परिस्थिति में नवांकुरों की स्थति का बहुत ही सुंदर आंकलन करती इस सफल लघुकथा की प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई । वंशवृद्धि का शीर्षक और उसकी पंच लाईन दोनों ही प्रस्तुति से न्याय कर रहे हैं। हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीया अर्चना जी।
राजनीति में वंश वृद्धि आम चलन है और साहित्य में एकदम इससे उलट बात है , एक सटीक विषय को लेकर सशक्त रचना बधाई आपको आ० रचना जी
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