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राज़ नवादवी: एक अंजान शायर का कलाम- ७८

१२१२ ११२२ १२१२ २२ 

कभी तो बख्त ये मुझपे भी मेहरबाँ होगा
मेरी ज़मीन के ऊपर भी आस्माँ होगा //१

गवाह भी नहीं उसका न कुछ निशाँ होगा
जो तेरे हुस्न के ख़ंजर से कुश्तगाँ होगा //२

हम एक गुल से परेशाँ हैं उसकी तो सोचो
वो शख्स जिसकी हिफ़ाज़त में गुलसिताँ होगा //३

ये ख़ल्क हुब्बे इशाअत का इक नतीजा है
गुमाँ नहीं था कि होना सुकूंसिताँ होगा //४

बदलते दौर में हैरत नहीं तेरा अपना
भले ही ज़ख्म न दे पर, नमकफ़िशाँ होगा //५

लकीरे बख़्त में ख़ालिक़ ने लिख दिया है 'राज़' //६
ख़याले यार ही आशिक़ का ख़ानुमाँ होगा

~ राज़ नवादवी

"मौलिक एवं अप्रकाशित"

बख्त- किस्मत; कुश्तगाँ- मारा गया; हुब्बे इशाअत- प्रकट होने की चाह; लकीरे बख़्त- भाग्य की रेखा; सुकूंसिताँ- सुकूं ले जाने वाला; नमकफ़िशाँ- नमक छिड़कने वाला; ख़ानुमाँ- घर

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Comment by राज़ नवादवी on December 8, 2018 at 5:39pm

आदरणीय लक्ष्मण धामी साहब, आदाब. ग़ज़ल में शिरकत और हौसला अफज़ाई का दिल से शुक्रिया. सादर 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 8, 2018 at 12:58pm

आ. भाई राज नवादवी जी, सुंदर गजल हुयी है । हार्दिक बधाई ।

Comment by राज़ नवादवी on December 7, 2018 at 9:11pm

आदरणीय समर कबीर साहब, काफ़ी इंतज़ार के बाद ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला अफज़ाई से धन्य हुआ. सादर. 

Comment by Samar kabeer on December 7, 2018 at 8:30pm

जनाब राज़ नवादवी साहिब आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।

Comment by राज़ नवादवी on December 7, 2018 at 12:46pm

आदरणीय तेज वीर सिंह साहब, आदाब. ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला अफज़ाई का दिल से शुक्रिया. सादर. 

Comment by TEJ VEER SINGH on December 7, 2018 at 10:51am

हार्दिक बधाई आदरणीय राज नवादवी जी।बेहतरीन गज़ल।

कभी तो बख्त ये मुझपे भी मेहरबाँ होगा 
मेरी ज़मीन के ऊपर भी आस्माँ होगा //१

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