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जाम से मुक्त, सारे शहर को कर दूँ

अवाक् रह गया, देख जाम को

खड़ा खड़ा मैं सोच रहा

जाम से मुक्त, सारे शहर को कर दूँ

ऐसा उपाय कोई खोज रहा ||

  

बस स्टैंड और प्लेटफॉर्म पर

जीवन, लोगों का बीत रहा

देश के सारे एयरपोर्ट पर

ना, दिन रात का भेद रहा

भगदड़ सी इस जिंदगी में

जैसे, इंसान खो सा गया

खड़ा खड़ा मैं सोच रहा

आश्चर्य से सब देख रहा ||

 

 बस भीड़ से भरी पड़ी

रेलें भी सारी लधी पड़ी

मोटरबाइक की झड़ी लगी

और कार रोड़ पर पार्क खड़ी 

देख शहर की हालत को

हैरान होकर सोच रहा

जाम से मुक्त, सारे शहर को कर दूँ

ऐसा उपाय मैं खोज रहा ||

 

अंडरपास और पुलों से हमनें

शहर को सारे भेद दिया

नए वाहन पर रोक लगी, ना

ना, गाड़ी पुलिंग पर जोर दिया

देख जाम के जमघट को

विस्मित हो मैं सोच रहा

जाम से मुक्त, सारे शहर को कर दूँ

ऐसा उपाय कोई सोच रहा ||

 

“मौलिक और अप्रकाशित”

 

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Comment

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Comment by PHOOL SINGH on December 13, 2018 at 2:47pm

आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 12, 2018 at 12:41pm

आ. भाई फूल सिंह जी, सुंदर व सार्थक कविता हुयी है । हार्दिक बधाई ।

Comment by Samar kabeer on December 12, 2018 at 11:05am

जनाब फूल सिंह जी आदाब,अच्छी कविता लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

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