हार हार का टूट चुका जब
तुमसे ही आश बाँधी है
मैं नहीं तो तुम सही
समर्थ जीवन की ठानी है||
मजबूर नहीं मगरूर नहीं मैं
मोह माया में चूर नहीं मैं
साथ तुम्हारा मिल जाए तो
लक्ष्य से भी दूर नहीं मैं ||
सुख दुःख की घटना तो
जीवन में घटती रहती है
छोटी छोटी नोक झोंक भी
हर रिश्ते में होती है
छोड़ न देना साथ निभाना
तुमसे, प्रेम की डोर जो बाँधी है||
गलत किये थे कुछ निर्णय
ये बात भी स्वीकारी है
मैं गलत और तुम सही
गलती मैंने मानी है
मझधार में फसीं जिंदगी की
नैया पार लगानी है||
जीवन संगिनी बनकर,
मेरी जिंदगी, सँवारी है
घर नहीं मेरे दिल में रहना
बस ख़्वाहिश ये हमारी है
मैं नहीं तो तुम सही
समर्थ जीवन की ठानी है||
“मौलिक और अप्रकाशित”
Comment
जनाब फूल सिंह जी आदाब,अच्छी कविता है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
' बस ख़्वाहिश ये हमारी है'
इस पंक्ति में 'हमारी' शब्द को "मेरी" कर लें ।
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