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221  2121  1221  212

इतने दिनों के बाद भी क्यों एतबार है.
मिलने की आरज़ू है तेरा इंतज़ार है.

ये ज़िस्म की तड़प है या मन का खुमार है,
लगता है जैसे हर घड़ी हल्का बुखार है.

मैं तेरी रूह छू के रूहानी न हो सका,
वो तेरा ज़िस्म छू के तेरा पहला प्यार है.

अब भी मेरे बदन में घुला है तेरा वजूद,
किस्मत की उलझनों से नज़र बेकरार है.

छुप कर तेरे ख़्याल में आती है जग की पीर,
दुनिया के गम से भी मेरा दिल सोगवार है .

बस तुझको याद करके लिखी जाती है ग़ज़ल,
मेरे हर एक मिसरे में तेरा खुमार है.

देती नहीं है सोने तेरी आँखों की झलक,
कुछ आंसुओं का बोझ अभी तक उधार है.

कैसे मेरा फसाना क़लम से बयान हो,
अल्फाज़ की लिमिट है कहन बेशुमार है.

उस आखिरी पैगाम की तहरीर याद कर,
'अहसास' उस फरेब का अब तक शिकार है.

मौलिक और अप्रकाशित

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 20, 2020 at 2:07pm

आ. भाई मनोज जी, अच्छी गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।

कृपया ध्यान दे...

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