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आदरणीय साहित्य प्रेमियो,

जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर नव-हस्ताक्षरों, के लिए अपनी कलम की धार को और भी तीक्ष्ण करने का अवसर प्रदान करता है. इसी क्रम में प्रस्तुत है :

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-118 

विषय - "जरा याद उन्हें भी कर लो"

आयोजन अवधि- 15 अगस्त 2020, दिन शनिवार से 16 अगस्त 2020, दिन रविवार की समाप्ति तक अर्थात कुल दो दिन.

ध्यान रहे : बात बेशक छोटी हो लेकिन ’घाव करे गंभीर’ करने वाली हो तो पद्य- समारोह का आनन्द बहुगुणा हो जाए. आयोजन के लिए दिये विषय को केन्द्रित करते हुए आप सभी अपनी मौलिक एवं अप्रकाशित रचना पद्य-साहित्य की किसी भी विधा में स्वयं द्वारा लाइव पोस्ट कर सकते हैं. साथ ही अन्य साथियों की रचना पर लाइव टिप्पणी भी कर सकते हैं.

उदाहरण स्वरुप पद्य-साहित्य की कुछ विधाओं का नाम सूचीबद्ध किये जा रहे हैं --

तुकांत कविता, अतुकांत आधुनिक कविता, हास्य कविता, गीत-नवगीत, ग़ज़ल, नज़्म, हाइकू, सॉनेट, व्यंग्य काव्य, मुक्तक, शास्त्रीय-छंद जैसे दोहा, चौपाई, कुंडलिया, कवित्त, सवैया, हरिगीतिका आदि.

अति आवश्यक सूचना :-

रचनाओं की संख्या पर कोई बन्धन नहीं है. किन्तु, एक से अधिक रचनाएँ प्रस्तुत करनी हों तो पद्य-साहित्य की अलग अलग विधाओं अथवा अलग अलग छंदों में रचनाएँ प्रस्तुत हों.
रचना केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, अन्य सदस्य की रचना किसी और सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी.
रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना अच्छी तरह से देवनागरी के फॉण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें.
रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे अपनी रचना पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं.
प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें.
नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
सदस्यगण बार-बार संशोधन हेतु अनुरोध न करें, बल्कि उनकी रचनाओं पर प्राप्त सुझावों को भली-भाँति अध्ययन कर संकलन आने के बाद संशोधन हेतु अनुरोध करें. सदस्यगण ध्यान रखें कि रचनाओं में किन्हीं दोषों या गलतियों पर सुझावों के अनुसार संशोधन कराने को किसी सुविधा की तरह लें, न कि किसी अधिकार की तरह.

आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता अपेक्षित है.

इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं.

रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. अनावश्यक रूप से स्माइली अथवा रोमन फाण्ट का उपयोग न करें. रोमन फाण्ट में टिप्पणियाँ करना, एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो - 15 अगस्त 2020, दिन शनिवार लगते ही खोल दिया जायेगा।

यदि आप किसी कारणवश अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.com पर जाकर प्रथम बार sign up कर लें.

महा-उत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
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मंच संचालक
ई. गणेश जी बाग़ी 
(संस्थापक सह मुख्य प्रबंधक)
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प्रथम प्रस्तुति

.........................

घर में घुसकर मार दिए, ये काम हुआ है बढ़िया जी।

नमन राष्ट्र के वीरों को हम, करते छत्तीसगढ़िया जी॥

 

सेना पर विश्वास नहीं, यारी जिनकी आतंकी से।

गद्दारों को सबक सिखाएँ, मारो लात और लठिया जी॥

पाक समर्थक नेता हैं कुछ, कलाकार हैं भारत में।

मीडिया कुछ देश विरोधी, जनम से हैं गड़बड़िया जी॥

 

सेना को बाधा पहुँचाते, बच्चे जो हैं पत्थरबाज।

क्यों सहते इनकी करतूतें, डालो काल कोठरिया जी॥

 

पुलवामा गलवान की घाटी, चीन पाक की करतूतें।

शहीदों को हम नमन करें, ना भूलें दुख की घड़ियाँ जी॥

विश्वविद्यालय में ऐय्याशी, राष्ट्र विरोधी नारेबाजी।

बहुत हो चुका सबको निकालो, पहनाकर हथकड़ियाँ जी॥

 

 ....................................

मौलिक अप्रकाशित

आदरणीय अखिलेश कृष्ण जी सादर अभिवादन विषय आधारित उम्दा सृजन के लिए दिल से बधाई कुबूल कीजिए

आदरणीय छोटेलालजी

रचना की प्रशंसा के लिए हृदय से धन्यवाद आभार आपका

आ. भाई अखिलेश जी, इस सुन्दरतम प्रस्तुति के लिए कोटि कोटि बधाईयाँ ।

आदरणीय लक्ष्मण भाई

रचना की प्रशंसा के लिए हृदय से धन्यवाद आभार आपका

आदरणीय लक्ष्मण भाई

रचना की प्रशंसा के लिए हृदय से धन्यवाद आभार आपका

कुछ याद उन्हें भी कर लो

विश्वज्योति के जो वाहक हैं, उनको शीश झुकाते हैं।
कीर्ति अलौकिक जिन वीरों की, उनका यश हम गाते हैं
वतन परस्तों के कर्मो से, हम हँसते मुस्काते हैं।
उनके एक समर्पण से हम, फूले नहीं समाते हैं।।1

रक्त बहाकर चर्म सुखाकर, नव जीवन वे देते हैं।
घोर तपन सर्दी वे सहकर, हर बाधा हर लेते हैं।
अपना सब कुछ न्यौछावर कर, भारत भूमि सजाते हैं।
प्रमुदित होकर विपुल वेग से, निज अस्मिता बचाते हैं।।2


धीर वीर गम्भीर पुरुष वे, दुश्मन को दहलाते हैं।
सत्वर अरिदल उच्छेदन कर, भूधर को दरकाते हैं।
बनी लहू जिनकी चिनगारी, ख़ाक हुए वैरी सारे।
दुष्ट अनाचारी सब उनके, भुजबल के आगे हारे।।3

उनका साहस शौर्य सुबल हम, वृथा नहीं होने देंगे।
सुंदर सुखद सत्व शुचिता हम, कभी नहीं खोने देंगे।
उनको याद करें तनमन से, जो सबके सुखदाता हैं।
कर्णधार सच्चे सपूत वे, नव भारत निर्माता हैं।।4

मौलिक एवं अप्रकाशित

आदरणीय भाई  छोटेलालजी

विषय के अनुरूप सुंदर सार्थक प्रस्तुति हृदय से बधाई

आ. भाई छोटेलाल जी, बेहतरीन रचना हुई है । हार्दिक बधाई ।

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आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

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