आदरणीय साथियो,
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यह टिप्पणी जिस बॉक्स मे पोस्ट की हैं वही कहानी नही अपितु लघुकथा पोस्ट करनी है ।
होड़
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विद्वादजनों की सूची जारी हुई। फिर विदुषियों की हुई।एक दूसरी संयुक्त हुई। फिर अलग अलग विद्वदजन, विदुषियां और साहित्यिक समूह सूचियां जारी करने लगे।किसी में किसीका नाम आता,किसी में नहीं आता। किसीका नाम किसी भी सूची में नहीं आता।जिसका नाम किसी भी सूची में आ जाता,वह सूचीबद्ध हुआ।जो हर जगह छूट गया,वह त्यक्त ,पर आशान्वित रहा कि कही किसी अगली सूची में वह शामिल कर लिया जाय।
प्रतिस्पर्धा का घनघोर दौर चला। मुंड से मुंड टकराए।कितने ही झंडे,बने,उठे, फटे।व्याकरण काका से विराम चिन्ह नाम के बच्चे पूछने लगे,'काका,इस रेलम पेल में हम कहां हैं?'
'मैं खुद कहां हूं,पता नहीं।यह कलम के सिपाहियों की फौज खड़ी हो रही है। इन्हें हमारी क्या जरूरत होगी?'
'मौलिक व अप्रकाशित'
आदाब, Manan Kumar Singh, ! जनाब, आप क्या कहना चाहते हैं, कुछ समझ में नहीं आया।संयोग से सम्प्रति यही गति ( सद्गति / दुर्गति ) कलम के सिपाही की नहीं, सभी प्रोफेशनल की है, फिर कलम के सिपाही की भी है, फिर आपकी लघुकथा में विशिष्ट क्या है ?
वर्तनी की समस्या भी आपकी प्रस्तुति में है, परित्यक्त को आप "त्यक्त" लिख रहे हैं ! सादर
आ.चेतनजी, त्यक्त शब्द है।उपसर्ग लगने से परित्यक्त होता है,जहां तक मेरी जानकारी है।
मनन कुमार सिंह, आदाब , भाई ! फिर धातु क्या हे, , जरा बताइए, सारा निश्चय हो जाएगा !
आ.चेतन जी,आपने 'त्यक्तेन भुक्तवा 'तो पढ़ा ही होगा, 'परित्यक्तेन भुक्त्वा 'तो मैंने नहीं पढ़ा।
आदाब, मनन कुमार सिंह ईशावास्य उपनिषद का सूत्र " तेन त्यक्तेन भुंजीथा:" है । हाँ, श्री जी ने पढ़ा है, न कि ग़लत, 'त्यक्तेन भुक्तवा' जो आप बता रहे हैं , इस से स्वयंसिद्ध है कि आपकी मान्यता मनगढ़ंत है !
टंकण जनित त्रुटियां भी होती हैं।ध्यान दिलाने के लिए शुक्रिया। हां,बात त्यक्त और और परित्यक्त पर अटकी थी।उम्मीद है अब स्पष्टता आ गई होगी।
आप बंधु, अभी भी असत्य भाषण कर रहे है, धातु त्यज् है और इसमें कत्वा प्रत्यय लगा है!
मैंने विद्वदजन लिखना चाहा था।
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