आदरणीय साथियो,
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हार्दिक आभार आदरणीय मनन कुमार सिंह जी।
लौट आया बचपन...
सेवानिवृत्त जीवन गुजारते सेवकलाल रोजमर्रा की तरह कंपनी गार्डन में शाम को टहलते हुये थक गये तो निराशमन से वही जमीन पर बैठ गये।अपने आप में खोये हुये सेवकलाल वास्तव में बूढ़ी हड्डियों से नहीं थके थे बल्कि अपने एकाकीपन से थक गये थे।खोये-खोये से... सोचने लगे ,जीवन की आपाधापी से मुक्त सुखदजीवन गुजारते चंद महीने भी व्यतीत नहीं हुये होंगे कि उम्र के आखिरी पढ़ाव पर साथ देने जीवन संगिनी अचानक हुये ह्रदय पक्षाघात से हमेशा के लिए साथ छोड़कर चली गई... और विदेश प्रवासी अपने बेटे-बहू,बेटी -दामाद ने साथ चलने को कहा पर वो अपने यादों के घरौंदे को छोड़कर नहीं जाना चाहते थे या फिर... सोचते-सोचते मन भारी हो गया.. कभी-कभार बच्चों से नाती-पोते से बात हो जाती तो बूढ़ी हड्डियों में जान आ जाती... नही तो उनसे हुई बातों को याद करके अपने आप में खुश हो जाते... तभी गार्डन में खेलते-कूदते बच्चों का देख-सुन ..सेवकलाल की धुंधली ऑखों में अपने बचपन का गलियारा घूम गया।
गांव की वो कच्ची-पक्की पगडंडियाँ पर भागमभाग धमाचौकड़ी पकड़म-पकड़ाई खेला करते थे.. दुनिया जहां की चिन्ताओं से दूर अपने आप में… मस्ती भरे दिन… जवानी की दहलीज पर कदम रखते हुये कही खो गये…!
तभी खिलखिलाते बच्चों को अपनी तरफ आते देख सेवकलाल का बुझा चेहरा खिल गया.. उनमें अपने नाती-पोतों की छवि देख झुर्रीदार चेहरे पर मुस्कान बिखर गई ।
उन्हें हंसते देख कोई दादाजी के कंधे पर झूल गया तो कोई दादाजी के गालों को नन्हें हाथों से सहलाते हुये मस्ती करने लगा।
बच्चों के साथ मस्ती करते हुये पोपले मुंह से छूंटती हंसी…जैसे.. सेवकलाल के बुढ़ापे के पतझर पर वसंत खिल गया।
स्वरचित व अप्रकाशित हैं।
बबीता गुप्ता
हार्दिक बधाई आदरणीय बबिता गुप्ता जी।
आदरणीय बबिता जी, प्रदत्त विषय पर आधारित इस लघुकथा हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए।
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