कोई रोए, दुःख में हो बेहाल
असहाय, असुरक्षित, अभावग्रस्त
टोटा संगी-साथी, हो कती कंगाल
अत्याचार, अव्यवस्था से त्रस्त
किसी को क्या फर्क पड़ता है ।
यहां-वहां घूमे, दुःख के आंसू पीए
गिड़गिड़ाए, झुके, करे चापलूसी
हर रोज, मर-मरकर फिर जीए
सालों की प्रतीक्षा, मिली न कोई खुशी
नहीं प्रफुल्लता, छाई बस जड़ता है।
हो ना कोई भी जरूरत पूरी
जी-तोड़ मेहनत करता दिन-रात
की हुई हर एक इच्छा अधूरी
हर अरमान टूटता, रहता अकुलात
चिंता मं हर दिन जाता सड़ता है ।
आंसू बहते जब-तब, कर्म-व्यवस्था असफल
कोई भी मदद को न आए आगे
हताशा, निराशा, कुंठा हर पल
कमरतोड़ मेहनत करके बने हैं अभागे
सरकारी कानून भी बस इन्हें ही जकड़ता है ।
कर्म, पुरुषार्थ, भाग्य सब पाखंड है
कपट करके धनी भोगता वैभव
ईमानदारी करने का मिलता दंड है
करूणा, सेवा में लुटाया सर्वस्व
पर धार्मिक हर अवसर पर अकड़ता है ।
धंसी भीतर को प्रतीक्षारत आंखें
सब कुछ दिखता बस अंधकारमय
हक मांगों तो मिलती है सलाखें
अमीरों को नहीं कोई कानून का भय
झूठा प्रेम धर्मगुरुओं को उमड़ता है ।
हड्डियों में धंसा पेट, चाहता कुछ कहना
पूरे चेहरे पर मुर्दानी का राज
भूखों मर के सीख लिया है रहना
जैसे पहले बर्बाद था, वैसे ही हूं आज
पसीने की जगह खून निचुड़ता है ।
मरना पड़े, यदि न रोऊं
हल्का हो जाता हूं रो-रोकर
घर वालों का दोषी होऊं
खेत बिगाड़ा बस, मैंने बो-बोकर
विनम्रता भी मेरी अक्खड़ता है ।
कड़ी मेहनत, बन गया अपराध
वैभव लूट रहे यहां पर निठल्ले
सफल होता बस एकाध
असफल कर्मयोगी, कुछ पड़ता न पल्ले
विजय अधर्म की, व्यर्थ में लड़ता है ।
धर्मगुरु, राजनेता, अभिनेता
ढोंगी, पाखंडी, अवसरवादी
इनसे कोई हिसाब क्यों नहीं लेता
लूट-खसोट, चोरी करते बर्बादी
छीना यौवन, छीनी अल्हड़ता ।
मेहनत को आज मिल रहा दंड है
पड़ा है इनका यहां पर अकाल
बेईमानी, लूटनीति का बहुमत प्रचंड है
पूरे राष्ट्र पर छाया है यह जंजाल
असमय मरेगा, तू अब भी अड़ता है ।
जठराग्नि विवश करती है
शोषण, दासता, गाली, अपमान
धन संग आत्मा जाती मरती है
लोकतंत्र है, न डालो व्यवधान
और कुछ न जीवन, बस फक्कड़ता है।
धोखे, कपट, बहुत घाव खाए हैं
प्रेम, करूणा न किसी ने दिखाई
स्वार्थ में ही बस पास आए हैं
सबने ही बस आग लगाई
शीतल चंदन आग झड़ता है ।
कर्म-व्यवस्था नहीं किसी के हाथ में
अयोग्य भोगे; वैभव, अमीरी
यह तो है बस इनके ही साथ में
हम तो बने बस व्यर्थ शरीरी
सभ्य वही जो पर हड़ता है।
-आचार्य शीलक राम
कविता स्वलिखित व अप्रकाशित है।
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