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लोक कथाएँ "कुछ" कहती हैं

उषा अवस्थी

लोक कथाएँ "कुछ" कहती हैं

भाव भरे, विभिन्न रस सिंचित

वह जीवन को गहती हैं

जुड़े रहें सम्बन्ध आपसी

प्रेम प्रगाढ़ विरचती हैं

परिवारों के रिश्ते-नाते

नेह- स्वरों से भरती हैं

प्रीति- पगे सुन्दर वचनो से

हो उत्फुल्ल गमकती हैं

सामाजिक समरसता के 

शुभ ताने-बाने बुनती हैं

लोक -कथाएँ "कुछ" कहती हैं

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Usha Awasthi on December 14, 2022 at 3:45pm

आ0 समर कबीर जी आदाब , रचना अच्छी लगी, जानकर खुशी हुई। हार्दिक आभार आपका।

Comment by Samar kabeer on December 14, 2022 at 3:36pm

मुह्तरमा ऊषा अवस्थी जी आदाब, अच्छी रचना हुई है, बधाई स्वीकार करें I 

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