1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
Subuhi Nigar's Comments
Comment Wall (5 comments)
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online
सदस्य कार्यकारिणीमिथिलेश वामनकर said…
ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार की ओर से आपको जन्मदिन कि हार्दिक शुभकामनायें।
मुख्य प्रबंधकEr. Ganesh Jee "Bagi" said…
मुख्य प्रबंधकEr. Ganesh Jee "Bagi" said…

अपने मित्रो और परिचितों को ओपन बुक्स ऑनलाइन से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक करे...Welcome to
Open Books Online
Sign Up
or Sign In
कृपया ध्यान दे...
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
6-Download OBO Android App Here
हिन्दी टाइप
देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...
साधन - 1
साधन - 2
Latest Blogs
तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या
दोहा सप्तक. . . . . विविध
छन्न पकैया (सार छंद)
गहरी दरारें (लघु कविता)
शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
जो समझता रहा कि है रब वो।
कुंडलिया. . . .
अस्थिपिंजर (लघुकविता)
कुंडलिया
पूनम की रात (दोहा गज़ल )
तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
यथार्थवाद और जीवन
ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
करेगी सुधा मित्र असर धीरे-धीरे -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
कहते हो बात रोज ही आँखें तरेर कर-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
तरही ग़ज़ल
Latest Activity
तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या
दोहा सप्तक. . . . . विविध
सदस्य टीम प्रबंधनSaurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
छन्न पकैया (सार छंद)
ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
गहरी दरारें (लघु कविता)
शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"