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आदरणीय काव्य-रसिको !

सादर अभिवादन !!

  

’चित्र से काव्य तक छन्दोत्सव का यह एक सौ छियासठवाँ योजन है।.   

 

छंद का नाम  -  रोला छंद  

आयोजन हेतु निर्धारित तिथियाँ - 

19 अप्रैल’ 25 दिन शनिवार से

20 अप्रैल 25 दिन रविवार तक

केवल मौलिक एवं अप्रकाशित रचनाएँ ही स्वीकार की जाएँगीं.  

रोला छंद के मूलभूत नियमों के लिए यहाँ क्लिक करें

जैसा कि विदित है, कई-एक छंद के विधानों की मूलभूत जानकारियाँ इसी पटल के  भारतीय छन्द विधान समूह में मिल सकती हैं.

*********************************

आयोजन सम्बन्धी नोट 

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो आयोजन हेतु निर्धारित तिथियाँ -

19 अप्रैल’ 25 दिन शनिवार से  20 अप्रैल 25 दिन रविवार तक  रचनाएँ तथा टिप्पणियाँ प्रस्तुत की जा सकती हैं। 

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मंच संचालक
सौरभ पाण्डेय
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम  

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Replies to This Discussion

रोला छंद

++++++

 

आँगन में है पेड़, मौसमी आम फले हैं|         

छोटे बच्चे देख, तोड़ने उसे चले हैं||

दिखता घर सुनसान, बड़ा शुभ अवसर आया|

खूब रसीले आम,  देखकर मन ललचाया||

 

सीढ़ी लाए पास, बांस की उसे टिकाये|

चढ़े तीन फिर चार, मगर दो चढ़ ना पाये ||

फल तक पहुँचा एक, तोड़ सब आम गिराया|

सबके हिस्से तीन, सभी का मन हर्षाया||

 

चित्र देखकर याद, मुझे बचपन की आई|

भरी दुपहरी मित्र, और हम दोनों भाई||

लाठी रखते साथ, आम झोला भर लाते|

रखवालों को देख, भागकर हम छुप जाते||

++++++++++++

मौलिक अप्रकाशित

 

आदरणीय  बड़े  भाई , आपकी रचना चित्र को अच्छे से  चित्रित  कर रही है , अंतिम बंद बचपन की याद दिला  रहा है , 
रचना के लिए बधाई 

वाह, आदरणीय, वाह! 

प्रवहमान अभिव्यक्ति पर हार्दिक बधाई

शुभ-शुभ 

आ. भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन।चित्र को साकार करते उत्तम छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई। 

आदरणीय अखिलेश जी

चित्र को जीवंत कर दिया है आपके छंदों ने। हार्दिक बधाई स्वीकार करें

बच्चों का ये जोश, सँभालो हे बजरंगी

भीत चढ़े सब साथ, बात माने ना संगी

तोड़ रहे सब आम, पहन कपड़े सतरंगी

सीढ़ी भी है साथ, लगी  तैयारी  जंगी

 

छप्पर न चढ़ जाएँ, कहीं अब सेना वानर

देख उमंग अटूट,  मुझे भी लगता है डर

यही  प्रार्थना है,  यही  है  मेरी     चाहत

तोड़ न पायें आम, मगर सब रहें सलामत

**************************************** 

मौलिक एवं  अप्रकाशित 

 

आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं । हार्दिक बधाई।

आदरणीय गिरिराज जी

वाह बहुत सुन्दर..चित्र के हर भाव को जीवंत करती रचना..हार्दिक बधाई 

आदरणीय गिरिराज भाई, 

प्रदत्त चित्र से उमगता बालसुलभ उत्साह सहज ही शाब्दिक हुआ है। बधाई बधाई बधाई

यह अवश्य है, कि दूसरे बंद में विषम चरण का निर्वहन मूल विधानुरूप नहीं हो सका है। विषम चरणांत के लिए पताका का विधान है। अर्थात, गुरु-लघु। जैसा आपने किया भी है। तो फिर, 'जाएँ' और 'प्रार्थना है' जैसे चरणांत नहीं होने थे। 

 शुभातिशुभ

रोला छंद

********

पके हुए  ढब  आम,  तोड़ने  बच्चे आये।
गर्मी का उपचार, तभी यह सबको भाये।।
बचपन की हर बात, अनौखी सच ही कहते।
जहाँ दिखें फल तोड़, लपक झोली में गहते।।
*
पता इन्हें है खूब, आम की बगिया किसकी।
जर्जर  यह  दीवार,  नहीं  है  चिन्ता इसकी।।
चतुर चपल जो  खूब, चढ़े  सीढ़ी से झटपट
नहीं चढ़े जो और, देखते आमों को टकटक।।
*
पता नहीं ये कौन, लङड़ा है या दशहरी।
मेरा  है  अनुमान,  हो  सकता तोतापरी।।
छोड़ो ये सब  बात, नाम  से क्या है लेना।
बच्चे कहते ज्ञान, नहीं इस पर कुछ देना।।
*
पकी न आये हाथ, मिलें दो अमिया कच्ची
लगा रही  यह  आस, एक  छोटी सी बच्ची।।

चित्र देखकर याद, दिवस बचपन के आये।
ऐसे ही नित आम, चोरकर हमने भी खाये।।
**
मौलिक अप्रकाशित

आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी

चित्र को सार्थक करती छंद रचना।चित्र के सभी भावों पर दृष्टि डाली है आपने। हार्दिक बधाई 

रोला छंद 
_
चित्र दिखाता मस्त, एक टोली बच्चों की
हैं थोड़े शैतान, मगर दिल के सच्चों की
ठान लिया है आज, तोड़ कर आम रहेंगे
पड़े चपत या लात, वीर बन सभी सहेंगे
_
देख रसीले आम,रहे कैसे मन काबू
राजू आया दौड़, दौड़कर आया बाबू
समझदार कुछ यार, नसैनी भी  ले आये
रखवाले की आँख,बचाकर आम चुराये
_
इसकी ऊँची शान, फलों का है यह राजा
गर्मीं में सब ओर, बजे बस इसका बाजा
हर ढेले बाजार, इसीका जलवा छाया
नाम रखा है आम,खास पर इसकी माया
____
मौलिक व अप्रकाशित 

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