आदरणीय साथियो,
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इस पटल के लघुकथाकार अपनी प्रस्तुतियों के साथ उपस्थित हों
नमन मंच। सादर नमस्कार आदरणीय सर जी। हार्दिक स्वागत। प्रयासरत हैं सहभागिता हेतु।
आप की प्रयोगधर्मिता प्रशंसनीय है आदरणीय उस्मानी जी। लघुकथा के क्षेत्र में निरन्तर आप नवीन प्रयोग कर इसे नया रूप देने में प्रयासरत है। हम आपकी इस साधना के सतत साक्षी हैं।
सादर
हार्दिक स्वागत आपका गोष्ठी और रचना पटल पर उपस्थिति हेतु। अपनी प्रतिक्रिया और राय से मुझे प्रोत्साहित करने हेतु हार्दिक धन्यवाद आदरणीय अजय गुप्ता जी। आपकी रचनाओं का भी मुझे इंतज़ार रहता है।
मोर या कौवा
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बूढ़ा कौवा अपने पोते को समझा रहा था। "देखो बेटा, ये हमारे साथ पहले हो चुका है। हमारे एक पूर्वज भी ऐसे ही एक बार गफ़लत में आ गए थे। उनको भी मोर का एक पंख मिल गया था जिसे उन्होंने अपनी पूँछ में लगा लिया था और..........।"
"और उन्होंने स्वयं को मोर समझना शुरू कर दिया। पर मोरों ने उनका मज़ाक बना कर अपनी बस्ती से भगा दिया। फिर वो लौट कर वापस आए तो कौवों ने भी उनका अपमान किया और उनको माफ़ी मांगने के बाद ही कौवों की टोली में वापिस लिया गया।......यही ना।"
पोते ने दादा कौवे की बात बीच में ही काट कर किस्सा जल्दी में पूरा कर दिया। और फिर बोला, "दादा जी, ये कहानी आप कितनी ही बार सुना चुके हैं। और हम अच्छे से जान और समझ भी चुके हैं।"
"फिर भी तुम वही काम एक बार फिर करना चाहते हो। गए समय से सीख न लेने वाला सबसे बड़ा मूर्ख होता है बेटा।" दादा कौवे ने समझाया।
“दादा जी, आप की सीख मुझे अच्छे से याद है। और विश्वास कीजिए मैं अगर मोरपंख लगा रहा हूँ और लगाने के लिए कह रहा हूँ इसके कारण हैं। और इस बार इसकी वजह से हमारा मज़ाक़ नहीं बनेगा अपितु सम्मान होगा।“ युवा पोते ने पूरे आत्मविश्वास से कहा।
“वो कैसे?” दादा कौवे के स्वर में उत्सुकता थी।
“दादा जी, पक्षियों में इस बार लोकतंत्र आ रहा है। जंगलसभा के पदाधिकारियों के लिए चुनाव हो रहें हैं। एक मोर भी उम्मीदवार है और उसे हमारे वोट चाहिए। इस बार वो घर आएगा, कुछ न कुछ भेंट भी लाएगा और ख़ुद हमें पंख लगाकर मोरों में शामिल करेगा।“
दादा सोचते रहे फिर बोले, “पर बेटा, उसके बाद हम आपस में अपने को मोर कहेंगे या कौवा।”
#मौलिक एवं अप्रकाशित
वाह। आप तो मुझसे प्रयोग की बात कह रहे थे न। लेकिन आपने भी तो कितना बेहतरीन प्रयोग कर डाला कौवे और मोर पंख के क़िस्से और तत्संबंधी बिम्बों को लेकर। बेहतरीन सृजन। संकेतात्मक शैली की बढ़िया विचारोत्तेजक रचना। समापन पंच भी शानदार। हार्दिक बधाई आदरणीय अजय गुप्ता जी।
अनेक-अनेक आभार आदरणीय शेख़ उस्मानी जी। आप सब के सान्निध्य में रहते हुए आप सब से जब ऐसे उत्साहवर्धक शब्द मिलते हैं तो मन प्रफुल्लित हो जाता है।
बहुत बहुत धन्यवाद
जी, ऐसा ही होता है हर प्रतिभागी के साथ। अच्छा अनुभव रहा आज की गोष्ठी का भी।
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