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अइसन कब होई , "भोजपुरी धारावाहिक कहानी" "चउथका कड़ी"

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चउथकी कड़ी 
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देवव्रतबाबू के दुआर पर अब्दुलमियाँ आउर उनकरा संगे चार पाँच आदमी बइठल रहन. पंडितजी पतरा निकाल के देखे लगले, तबहीं भीतरी से प्रकाश आके कहलन, "पंडितजी, माई बोलली ह जे बढ़िया से ग्रह दासा सब देख लेम !" तब पंडितजी आपन चश्मा ठीक करत ऊपर नजर उठाके बोललन, "बबुआजी रउआ बाबुओजी के टिपण हमहीं मिलवले रहनी. बोल द उहाँ के जवन काम होई ऊ बढ़िये होई. उहाँ के चिंता जनि करीं" 
एपर सब केहू हँसे लागल.  तबे दुआर पर आइके एगो जीप रुकल जवन में ड्राइवर सीट पर अब्दुलमियाँ के लइका रहीम बइठल रहले. ऊ गाड़ी से उतर के  देवव्रतबाबू अपना अब्बा हुजुर के संगे पंडितजी के प्रणाम कईले. देवव्रतबाबू उनके असीरवाद दिहले आ पंडितजी अइसे पीछे ओरे झुकले जईसे छुआ जनि जास, ई देख देवव्रतबाबू बोललन, "पंडितजी दुनिया चाँद पर चल गइल रउआ अबहियों जात-पात, ऊँच-नीच के भेद भाव मानत बानी?"  तब पंडितजी आपन चश्मा ठीक करते कहलन, "हम एगो बात कहीं जजमान ?"  देवव्रत बाबू हाँ में सर हिलवले. पंडितजी एक साँस में बोलत जात रहलन, "रउआ ई सभ ना मानी ले त फेर ई सभ काहें के ढकोसला?  का जरुरत बा ई कुल्हि करे के? लईका पसंद आगइल तऽ जाईं कोर्ट में सादी कराईं. सब ठीके बा" तब देवव्रतबाबू कहलन,  "ई कुल्हि बात से छुअइला के का लेबे-देबे के बा ?" तब पंडितजी कहलन, "बाऽऽ .. एकर बहुत गहरा संबन्ध बा जजमान. मानी त देव ना त पत्थर, अब जब रउआ ई पतरा खोलवावत बानी त एकरा लगहूँ केहू असुध आदमी ना बइठे के चाहीं, अब रउए बताईं मियाँजी लोग मुर्ग-मसल्लम खाए वाला लोग अगर ई खाइ के आइल होइहन. इ हमरा पतरवा से छुअइहन त हमारा पाप लागी की ना ?" तब एगो कुर्सी पर बइठते रहीम कहलन, "पंडितजी, हम एगो मुसलमान हईं बाकिर रउआ के बता दीहीं जे लइकाईंए से हम चाचा ईहाँ आइले. हमार परवरिस एह घरहीं भइल बा. एगो आउर बात, हम त वकील हईं बाकिर लोग हमके शास्त्रीजी काहे ला !" तब अब्दुलमियाँ बोलले, "महाराज, ई संस्कृत से शास्त्री कइले बाड़न. मांस के बात छोड़ीं, ई त पिआजु-लहसुन तकले ना खाले आउर बहुत बढ़िया पतरो देखेलन !" तब पंडितजी खुस हो के कहलन, "ये महाराज दूर काहें बइठल बानी? आईं, ई पतरा देखीं !" तब देवव्रतबाबू कहलन, " अइसने सोच के जरुरत बा समाज के महाराज. हमारा बहुत निमन लागल. छोड़ीं ई कुल्हि एही तरी चलत रही, पहिले पतरा दखीं." पंडितजी सभ कुछ मिला के एगो कागज पर लिखले आ ऊ रहीम से एगो बिसय पर चर्चा करे लगले. तबहीं उहाँ चाय लेके प्रकाश अइले, "भईया प्रणाम ! कब अइनीं हँ पटना से ?" रहीम कहले, "अबहीं चलले आवत बानी" प्रकास कहले, "चलीं घरे" आउर ऊ उठि के चल दिहले. पंडितजी चाय के चुस्की लेते लेते  कहले, "महाराज, बहुत बढ़िया मिलान भइल बा. अईसन मिलान त रामजी आ सीताजी के भइल रहे !" देवव्रतबाबू बोललन, "त खबर भेजवा दिआव महाराज" "हँऽ भेजवा दीहीं, बाकिर हमार एमे तनिका ’लेकिन’ लगत बा."  पंडितजी कहलन. देवव्रतबाबू कहलन, "का ’लेकिन’ बा महाराज ?" पंडितजी कहलन, "हम आराम से देख के काल्हु बताइब. ओकरा बादे रउआ खबरभेजब." देवव्रतबाबू पंडितजी के भकुआइल देखते रह गइलन...

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बाकी अगिला अंक में 

 

 

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पंडितजी चाय के चुस्की लेते लेते  कहले, "महाराज, बहुत बढ़िया मिलान भइल बा. अईसन मिलान त रामजी आ सीताजी के भइल रहे !" देवव्रतबाबू बोललन, "त खबर भेजवा दिआव महाराज" "हँऽ भेजवा दीहीं, बाकिर हमार एमे तनिका ’लेकिन’ लगत बा."  पंडितजी कहलन. देवव्रतबाबू कहलन, "का ’लेकिन’ बा महाराज ?" पंडितजी कहलन, "हम आराम से देख के काल्हु बताइब. ओकरा बादे रउआ खबरभेजब." देवव्रतबाबू पंडितजी के भकुआइल देखते रह गइलन...


बहुत नीमन गुरूजी. रामजी अउरी सीता के कुंडली के उपमा देके रौया एक दुसरे संकेत दे देहली. धन्यवाद.

satish bhaiya ram ji aur sita ji ke kundali bahut badhia milal rahe bakir jiwan santi se na ब्ital

badhiya kahani  ke sange dharavahik aage badhi rahal ba guruji ...........

dhanyabad brij bhushan ji

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