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"OBO लाइव महा उत्सव" अंक १३ ( Now Closed with 1048 Replies )

सभी साहित्य प्रेमियों को सादर वन्दे !

 

जैसा कि आप सभी को ज्ञात है ओपन बुक्स ऑनलाइन पर प्रत्येक महीने के प्रारंभ में "ओबीओ लाईव महा उत्सव" का आयोजन होता है, उसी क्रम में प्रस्तुत है :

 

"OBO लाइव महा उत्सव" अंक  १३

इस बार महा उत्सव का विषय है "मौसम  "  


आयोजन की अवधि :- मंगलवार ८ नवम्बर २०११  से गुरूवार १० नवम्बर २०११  तक


महा उत्सव के लिए दिए गए विषय को केन्द्रित करते हुए आप सभी अपनी अप्रकाशित रचना साहित्य की किसी भी विधा में स्वयं द्वारा लाइव पोस्ट कर सकते है साथ ही अन्य साथियों की रचनाओं पर लाइव टिप्पणी भी कर सकते है | उदाहरण स्वरुप साहित्य की कुछ विधाओं का नाम निम्न है: 


  1. तुकांत कविता
  2. अतुकांत आधुनिक कविता
  3. हास्य कविता
  4. गीत-नवगीत
  5. ग़ज़ल
  6. हाइकु
  7. व्यंग्य काव्य
  8. मुक्तक
  9. छंद  (दोहा, चौपाई, कुंडलिया, कवित्त, सवैया, हरिगीतिका इत्यादि)

 

 अति आवश्यक सूचना :- ओ बी ओ प्रबंधन से जुड़े सभी सदस्यों ने यह निर्णय लिया है कि "OBO लाइव महा उत्सव" अंक १३ जो कि तीन दिनों तक चलेगा उसमे एक सदस्य आयोजन अवधि में अधिकतम तीन स्तरीय प्रविष्टियाँ   ही प्रस्तुत कर सकेंगे | साथ ही पूर्व के अनुभवों के आधार पर यह तय किया गया है कि नियम विरुद्ध और गैर स्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये और बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकेगा, यह अधिकार प्रबंधन सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा और जिसपर कोई बहस नहीं की जाएगी |


(फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो ८ नवम्बर लगते ही खोल दिया जायेगा )


यदि आप किसी कारणवश अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.comपर जाकर प्रथम बार sign up कर लें |


मंच संचालक

धर्मेन्द्र शर्मा (धरम)

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Replies to This Discussion

आदरणीय सौरभ जी, यही फायदा होता है भोर के समय सैर करने का...आपकी रचना एक दम तरोताज़ा हवा का झोंका और ओस की बूंदे लिए अवतरित हुई है मंच पर...बस पढ़ते ही जाने का मन कर रहा है...मौसम के बहुत ही बढ़िया रंगों का चयन किया है आपने...चाहे वो दिन के हों या रात के...हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिये प्रभुवर

हार्दिक रूप से अभिभूत हूँ, धरम भाई.

मौसम के कई रूप हम जीते हैं .. कुछ दिन में..  कुछ दिन में .. और कुछ दिन ही में ..  :-))))))

हा हा हा ........

 

जय ओबीओ - जय जय गिरिधारी !!

मत्तगयंद रचे मनभावन सौरभ जी अति सुन्दर देखा

 

आनंद आ गया आदरणीय सौरभ भईया.... सचमुच...

सादर बधाई/नमन.

 

धन्यवाद संजय जी.  बस सीखने-सिखाने का चलन बना रहे.. .

 

सादर  नमन गुरुवर...

जय ओबीओ - जय जय गिरिधारी !!

भाव विशेष की बात कहाँ, परिवेश लगे कचनार डुलाई

बन्धन की अब बात करो मत, मुक्त हुए हर छंद-रुबाई ॥

 


रोचक, प्रेरक, मोहक, मादक, रंग बखानत, बोल झरे है 

छोह भरी रतियाँ सुख की, दिन खेलन को अब राड़ करे है ॥......सौरभ ji maja aa gaya...itani lay-badhata..wah!

 

धन्यवाद अविनाशजी. सीखने-जानने का वातावरण और सहयोग सदा बना रहे..

 

//मौसम का नव रूप सखे, मनभावन पींग लगे सुखदाई

नैन भरे नहिं दृश्य दिखे, तन भोग रहा अहसास हवाई

भाव विशेष की बात कहाँ, परिवेश लगे कचनार डुलाई

बन्धन की अब बात करो मत, मुक्त हुए हर छंद-रुबाई ॥

 

पात की नोंक पे ओस बसी,  अह! रूप मनोहर भाव धरे है

आज सभी मृदुहास रुचें,  चतुरी सजनी मधु-भास करे है

रोचक, प्रेरक, मोहक, मादक, रंग बखानत, बोल झरे है 

छोह भरी रतियाँ सुख की, दिन खेलन को अब राड़ करे है ॥//


सौरभ सुंदर मत्तगयंद पे मौसम का मन झूम उठा है

राग-विराग लिए फिर भी अब छंदन को मन चूम उठा है

 बोल मनोहर साज बने, मदमस्त पुरंदर घूम उठा है 

ओस की बूँद जो सीप पड़ी तब मोतिनि मोतिनि बूम उठा है ||

बहुत-बहुत बधाई मित्रवर!

आदरणीय अम्बरीष भाई.. .आपसे सुने को उकेरा है. छंद आपको रुचा इस निमित्त हुई संतुष्टि आह्लादकारी है.

सादर धन्यवाद, श्रीमान् !!

 

जय हो जय हो मित्रवर !

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